Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ ईसरसूरि-विरचित ललितांग-चरित्र · अपर-नाम रासक-चूडामणि __ -सं. हरिवल्लभ भायाणी श्री वर्धमानाय नमः ॥ "विमल-कर-कमले"ति सागरदत्त-श्रेष्ठि-रासकादौ गाथा यथा, तथात्रापि प्रथम-गाथा । पढमं पढम-जिणिदं, पढम-निवं पढम-धम्म-धुर-धरणे । वसहं वसह-जिणेसं, नमामि सुर-नमिय-पय-देसं ॥१ सिरि-आससेण-नरवर-विसाल-कुल-[कमल]-भमर-भोगिंदो । भोगिंद-सहिय-पासो, दिसउ सिरिं तुम्ह पहु-पासो ॥२ सिरि-सालसूरि-पाया, निच्चं मे होज्ज गुरुअ-सुपसाया । अन्नाण-तम-तमो-भर-हरणेऽरुण-सारहि-व्व समा ॥३ सालंकार-समत्थं, सच्छंदं सरस-सुगुण-संजुत्तं । ललिअंगकुमर-चरियं ललणा-ललियं व निसुणेह ॥४ दढ-दुग्ग-मूल-कोसीस-पत्त-नर-रयण-भमर-पक्खिलियं । रेहइ कय-सिरि-वासं सिरिवासं नयर-तामरसं ॥५ दूहउ . तिणि पुरि पुर-जण-रंजवण, राणी-कमला-कंत । नरवाहण-निव नय-निउण, अहिणव-कमला-कंत ॥६ गाथा तप्पुत्तो सव्वुत्तो, सव्व-कला-कोसलेण संपुण्णो । ललियंग-नाम-कुमरो ललियंगि-विलास-वर-भमरो ॥७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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