Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 08 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 4
________________ सम्पादकीय अनुसन्धाननी या mनो आ आठमो मुकाम छे. संशोधन अंगेनी माहिती पत्रिकाना रूपमा उद्भवेल अनुसन्धान, लागे छे के, साव अनायासे ज एक शोधसामयिक तरीके विकसी-विस्तरी रह्यं छे. जैन ग्रंथ भंडारोमां संगृहीत साहित्य एटलुं बधुं विपुल छे के आ एक नहि आवां अनेक सामयिको पण तेना अध्ययन तथा प्रकाशन माटे ओछां पडे. आ अंकमां प्रकट थती 'ललितांगचरित' एक विशिष्ट कृति छे, जे मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासीओ माटे खुब रसप्रद बनी रहे तेवी छे. आ कुतिनो संक्षिप्त परिचय अनुसन्धान-७मां अपायो हतो. अहीं तेनी, पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य भंडारमाथी प्राप्त, एकमात्र हस्तपोथीने आधारे ऊतारेली वाचना आपेल छे. तेनी भूमिका तथा परिशिष्ट वगेरे उमेरीने, भविष्यमां, स्वतंत्र पुस्तक करवानी ख्वाएश पण छे ज. शनैः शनैः चालती आ अनुसन्धान-यात्रा विद्यारसिकोने रसदायक बनती रहेशे तो ते आनंददायक हशे. -संपादको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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