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अनेकान्त
[ किरण ३
क्षत्रिय कहकर उल्लेख किया है X | इस जातिमें अभी तक जैनधर्मके संस्कार के फलस्वरूप ममांसादिकका प्रचलन बिल्कुल नहीं है और श्राचारविचार बहुत शुद्ध हैं । यदि ये लोग बौद्ध मतावलम्बी होते तो इनमें भी मांसका प्रचलन अवश्य रहता, फर मत्स्यान्न भक्षी प्रधान मंगदेशमें और खासकर तांत्रिक युगमेंसे निकलकर भी अब निरामिष भोजी रहना इनके जैनत्व को और भी पुष्ट करता है। किन्तु अब ये लोग देष्णवधर्मालम्बी है। - यवसाय वाणिज्य आदि करनेसे अब इनकी वैश्यवृत्ति हो गई है। उपरोक्त चारों जिलोंमें इस पुण्डो ( पुराडू) जातिके अधिकांश जन रहते है। मध्य बंगके नदिया, दक्षिण बंगके यशोहर और पूर्व वंग के पचना जिलोंमें भी अल्प संख्या में ये पाये जाते हैं। विहार जिलेके संधान परमनेके पाकूर अंचल में भी इनका वास है उड़ीसाके बाद स्टेटमें भी इस जाति के लोग पाये जाते हैं और वहाँ पुण्डरी नामसे सत् शूद्र श्रेणी के अन्तर्गत है ।
डोज
बंगाल के उत्तर पश्चिमांश में मालदा, राजशाही, वीरभूम, मुर्शिदाबाद, जिलोंमें पुरंड़ो-पुण्डा पौड्रा- पुण्डरी, पुण्डरीक, नामसे परिचित एक जाति वास करती है। ये अपनेको क्षत्रिय पुरुहूगोके वंशधर बताते है। शास्त्रोंमें (पुण्डू) शब्द देश और जातिवाचक रूपसे व्यवहृत हुआ है। पुण्ड्रदेश में रहने के कारण ये लोग पुण्ड्र कहे जाने लगे राज्याधिकारच्युत हो जानेके कारण पुण्ड्रा जातिके और पुत्र या पौरा शब्द अपभ्रष्ट उच्चारणसे पुण्डो, लोग कृषि और शिल्प कौशलसे जीविकार्जन करते आ रहे पुण्डरी आदि शब्द बन गये हैं। प्रसिद्ध मालदह नगरसे हैं। इनमें सगोत्र विवाह निषिद्ध है । पुण्ड्र जाति में विश्वा दो कोश उत्तरपूर्व और गौड नगरसे ८ कोश उत्तर में विवाह भी प्रचलित नहीं है। इनमें २० गोत्र हैं जैसे फिरोजाबाद नामक एक अति प्राचीन स्थान है । स्थानीय काश्यप, श्रग्नि वैश्व, कन्व कर्ण, अवट विद चान्द्रमास, लोग इस स्थानको पोंडोबा या पु'डावा कहते हैं । इस मालापन, मौदगल्य मापून तामिड मुदगल, वैयाघ्रपद स्थानसे १ कोश उतर-पश्चिममें और मालदह २३ कोसलौटि शालिमन, चिकित; कुशिक येशु, आलम्यायन
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उत्तरमें वारदीवारी - पुण्डोव के भग्नावशेष हैं ।
इस पुण्ड्रजाति कमसे कम दर वर्ष पहले वर्तमान बंगदेश के उत्तर पश्चिम भाग अर्थात्पौगदेश या पुराइदेशमें अपने नामानुसार उपनिवेश स्थापनकर राज्य किया और ये लोग जैन धर्मानुयायी थे । अत एंव इस क्षत्रिय पुण्ड्रजातिको भी ब्राह्मणोंने क्रोधके कारण शास्त्रोंमें प्रक्षेपण द्वारा वृषन या भ्रष्ट • जैन धर्मप्रवर्तक पार्श्वनाथ और महावीरस्वामी एवं 'अहिंसा परमो धर्म' मन्यके ऋषि और धर्मके संस्थापक भगवान बुद्धने एक समय अपनी पदपूजिसे पौ वनको पवित्र किया था ।
शालाक्ष, लौक, वारक्य, सौम्य, भलन्दन कांसलायन शाfरहस्य, मोडवायन, पराशर लोहायन, और शंख इनमें कच्ची (सिद्धान्न) और पक्की ( पक्वान्न ) प्रथाकी कट्टरता और जाति-पांतिका प्रचलन है पीयदेशमें पहले जैनोंका ही प्रभाव था । अतः विद्व ेषके कारण इस जैनपुण्डजा को ब्राह्मणोंने शूद्र संज्ञा दे दी है। वैष्णवधर्मको अपना लेनेके कारण इन पर इतनी कृपा कर दी कि इन्हें सत्-शूद्रों में गर्भित कर लिया है ।
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गया है ! इसकी वर्तमान सीमा उत्तर में ब्राह्मणी नदी, दक्षिण-पूर्व सीमा भागीरथी (नंगा) और पश्चिम में शाहबाद परगना है ।
उपरोक्त विवेचनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन कालमें ये सप्तशती ब्राह्मण भी जैनधर्मानुवायी थे। पहाड़पुरके गुप्तकालीन ताम्रशासन में भी नाथशर्मा और उनकी भार्या रामीका उल्लेख हुआ है जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि पंचम शताब्दि तक बंगाल जैन ब्राह्मण थे ।
( देखो बंगे क्षत्रिय पुण्ड्रजाति -श्री मुरारी मोहन सरकार )
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X मोकळा, दाविडा, खाटा, पौगड़ा कोराब शिरस्तथा, शौडिका दरदा दश्योरा किराता पवना श्चैवस्तथा पत्रियजातयः । वृषत्यमनुप्राप्त ब्राह्मणानामर्पयात् ॥
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ३५ * यह ऊपर लिखा जा चुका है कि बंगाल में मात्र दो ही जाति या वर्ण हैं । ब्राह्मण और शूद्र ।
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