Book Title: Ancient Jaina Hymns
Author(s): Charlotte Krause
Publisher: Oriental Institute

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Page 157
________________ THE TEXTS मेरुगिरि-सिहरि धय-बंधणं जो कुणइ गयणि तारा गणइ, वेलुआ-कण मिणइ । चरम-सायर-जले लहरि-माला मुणइ __ सोवि नहु, सामि, तुह सव्वहा गुण थुणइ ॥२॥ तहवि, जिण-नाह, निय-जम्म सफली-कए - विमल-सुह-झाण-संधाण-संसिद्धए । असुह-दल-कम्म-मल-पडल-निन्नासणं तात, करवाणि तुह संथवं बहु-गुणं ॥३॥ मोह-भर-बहुल-जल-पूर-संपूरिए विषय-घण-कम्म-वणराजि-संराजिए । भव-जलहि-मज्झि निवडंत-जंतू-कए ... सामि सोमंधरो पोअ जिम सोहए ॥४॥ तेअ-भर-भरिअ-दिसि-विदिसि-गयणंगणो पबल-मिच्छत्त-तम-तिमिर-विद्धसणो । भविअ-जण-कमल-वणसंड-बोहंकरो सामि सीमंधरो दिप्पए. दिणयरो ॥५॥ सुजण-मण-नयण-आणंद-संपूरकं दुरित-हरतार, तारक, मुणी-नायकं । सयल-जग-जंतु-भव-पाप-तापापहं नमउं सीमंधर, चंद-सोहावहं ॥६॥ सुर-भवणि, गयणि, पायालि, भूमंडले नयरि, पुरि, नीरनिहि, मेरु-पन्वय-कुले । देव-देवी-गणा, नारि-नर-किनरा ___ तुह्य जस, नाह, गायंति सादर-परा ॥७॥ 121 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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