Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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का नाम वर्द्धन था । सर्वदेव की पत्नी का नाम सुन्दरी थी । सुन्दरी ने जसनाग
और सड्ढ नामके दो पुत्र को जन्म दीया । जेठ की पत्नी का नाम श्रीदेवी था । उसके नन्दिकुमार और संभीत नामक दो पुत्र हुए । नेमिकुमार की पत्नी का नाम यशोदेवी था । उसने पउमसिरि और अभयसिरि नामकी दो सुन्दर पुत्रियों को जन्म दिया । नेमिकुमार की दूसरी पत्नी का नाम धनसिरि था । उसके पुत्र का नाम उसहदत्त था । उसने अपने पिता नेमिकुमार द्वारा निर्मित ऋषभजिन मन्दिर में देवकुलिकाओं को बनवाकर उसमें जिनबिम्ब की स्थापना की और अनेक पुस्तक लिखवायें ।। __ ऋषभदत्त श्रेष्ठी की चार बहने थीं । एक का नाम जेइया दूसरी का नाम सिवदेवी तीसरी का नाम जिनदेवी और चौथी का नाम रुप्पिणी था । वीर श्रेष्ठी
की भी दो पुत्रियां थीं । एक का नाम विमलसिरि और दूसरी का नाम देवसिरि । विमलसिरि के कोई सन्तान नहीं थी । देवसिरि ने दो पुत्र रत्न और एक पुत्री को जन्म दिया। प्रथम पुत्र का नाम कबड्डी और दूसरे का नाम पुण्डरीक और पुत्री का नाम देवमती था ।
श्री ऋषभ श्रेष्ठी की पत्नी अइहव देवी ने चार पुत्रों को जन्म दिया । प्रथम पुत्र का नाम श्रीकुमार द्वितीय का नाम देवकुमार तृतीय का नाम कुमारपाल और चोथे पुत्र का नाम जसकुमार था और सज्जनीराणी नाम की एक पुत्री थी।
सेठ कबड्डी की पत्नी का नाम आमिनी और पण्डरीक सेठ की पत्नी का नाम पदमनी था । आमनी के तीन पुत्र थे । एक का नाम पदुमकुमार दूसरे का नाम माईकुमार और तीसरे का नाम सामिकुमार था | पुण्डरीक श्रेष्ठी की एक पुत्री थी जिसका नाम सीलुया था । देवकुमार की पत्नी जसमती ने जेतलदेवी नामकी पुत्री और पासकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया ।
कुमारपाल की पत्नी जयसिरि ने भी जयदेवी नामकी पुत्री और जसकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया ।
श्रेष्ठी कवड्डी और देवकुमार आदि ने भक्ति पूर्वक आ. नेमिचन्द्रसूरि से अनन्त जिनचरित्र की रचना करने की प्रार्थना की । इन श्रेष्ठियों के अनुरोध से आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि ने वि.सं. १२१६ में वैशाख वदि बारस के दिन सोमवार को पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में इंद्रयोग में कुमारपाल राजा के राज्यकाल में वर्द्धमान (वढ़वाण) नगर में विशिट्ठवरणग श्रेष्ठी की वसति में रहकर इस ग्रन्थ का आरंभ कर एक वर्ष की अवधि में धवलक्क (धोलका) नगर के एक मन्दिर में भ. पार्श्वनाथ की कृपा से १२००० श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ को समाप्त किया । इसका प्रथमादर्श गुर्जरवंशोत्पन्न मेघकुमार नाम के विद्वान ने लिखा ।
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