Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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ग्रन्थ प्रशस्ति इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सरि विषयक परिचय नहीं मिलता किन्तु इन्होंने ग्रन्थ अन्त में दी गई प्रशस्ति में अपनी गुरु परम्परा और ग्रन्थ विषयक जानकारी इस प्रकार दी है -(गाथा ९ड५४७ - ९६०९)
(शाखा प्रशाखा से युक्त विशाल वटवृक्ष की तरह बड़गच्छ नामक गच्छ है। इस गच्छ में अनेक विद्वान और उच्च कोटि के कवि हो गये हैं । इसी गच्छ में श्री देवसूरि नाम के महान् प्रभावशाली आचार्य हुए । उनके शिष्य निर्ग्रन्थ शिरोमणी आ. अजितदेवसूरि थे । उनके शिष्य जनमन को आनन्दित करनेवाले जग प्रसिद्ध आ. आनन्दसूरि थे । उनके तीन शिष्यों में प्रथम शिष्य आचार्य नेमिचन्द्रसूरि । ये अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान थे । इन्होंने लघुवीरचरित्र, उत्तराध्ययन पर वृत्ति, अख्यानकमणिकोष, और रत्नचूड़नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की । दूसरे शिष्य थे आ. उद्योतनसूरि । ये कठोर तपस्वी और उच्च कोटि का आचार पालने वाले महान् सन्त थे । तीसरे शिष्य थे, आ. जिनचन्द्रसूरि । ये अपने समय के प्रसिद्ध वक्ता थे इनके प्रवचन से जनता बड़ी प्रभावित होती थी, आ. जिनचन्द्रसूरि ने अपने पट्टपर दो शिष्यों को प्रतिष्ठित किया । एक आम्रदेवसूरि और दूसरे श्रीचन्द्रसूरि । आचार्य आम्रदेवसूरिने आख्यानकमणिकोश पर वृत्ति की रचना की थी । श्री आम्रदेवसूरि ने अपनेपट्ट पर चार प्रकाण्ड पण्डित मुनियों को स्थापित किये उनमेंसे प्रथम शिष्य शीघ्र कवि आचार्य हरिभद्र को एवं द्वितीय पट्टधर के रूप में तर्क अलंकार तथा शास्त्रज्ञ एवं एकान्तर उपवासी आ. विजयसेन को स्थापित किया । उनके कनिष्ट शिष्य आ. नेमिचन्द्रसूरि थे । उनके तृतीय पट्टधर लक्षण, छंद, अलंकार तर्क, साहित्य और शास्त्र के जानकार विद्वान आ. यशोदेवसूरि थे । आचार्य विजयसेनसूरि के पद पर आ. नेमिचन्द्रसूरि ने समन्तभद्र नामके आचार्य को स्थापित किया । एक बार आचार्य विहार करते हुए जिनघरों (मंदिरों) से अलंकृत कुड़कच्छलपुर पधारे । वहाँ न्याय नीति से व्यापार करनेवाला गुर्जरवंशोत्पन्न संवहरि नामक श्रेष्ठी रहता था । उसकी पति भक्ता जिनदेवी नामकी पत्नी थी । उसके चार पुत्र थे । प्रथम कुमार, द्वितीय साउ, तीसरा सर्वदेव और चौथे पुत्र का नाम जेउअ था ।
शील से समलंकृत मल्हुआ नाम की कुमार की बहन थी । कुमार की पत्नी का नाम संपुन्ना था, उसके ठक्कुर और वोसरि नामके दो पुत्र हुए । साउ की दो पत्नियां थी । एक का नाम जिनमती और दूसरी का नाम देवमती था । उनके चार पुत्र थे । प्रथम नेमिकुमार, द्वितीय वीर, तृतीय मत्त और चतुर्थ पुत्र
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