Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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कथा ग्रन्थों की रचना कर मानव समाज के उत्थान में अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया है ।
प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश से होती हुई जैन कथाओं की विकास यात्रा उन्नीसवीं सदी तक गुजराती और हिन्दी साहित्य की परिधि में समाप्त होती है । कथाओं की लंबी यात्रा के कारण परम्पराओं की भिन्नता अनुश्रुतियों का अन्तर एवं समय के दीर्घ व्यवधान के कारण कथा सूत्रों में चरित्रों में परस्पर भिन्नता और घटनाओं का जोड़ तोड़ भी काफी भिन्न हो गया है । अनेक कथाएँ तो ऐसी है जो बड़ी प्रसिद्ध होते हुए भी कथा कथा ग्रन्थों में बड़ी भिन्नता से वर्णित हैं । तीर्थंकर चरित्रों के लिए भी ऐसा ही हुआ है । चरित्रकारों ने आगमों में उपलब्ध तीर्थकर चरित्र को ग्रहण कर उनके अवान्तर कथाओं की घटनाओं को जोड़कर उनका विस्तृत रूप तैयार कर एक स्वतंत्र रूप से ग्रन्थ का निर्माण किया है । इन चरित्रों के या कथा ग्रन्थों के मूल स्त्रोत की खोज करना या उनकी ऐतिहासिकता की परीक्षा करना जलमंथन जैसा ही है । __ अवान्तर कथाओं में भी विविध कथानकों के प्रभावोत्पादक, आश्चर्यजनक या कुतुहल उत्पन्न करनेवाले पूर्वार्ध घटकों को उत्तरार्द्ध में और उत्तरार्ध घटकों को पूर्वार्ध में रखकर नाम और स्थल के परिवर्तन के साथ स्वतंत्र कथानक तैयार कर उन्हें अपनी भावभाषा में वर्णित किया है । अतः इनमें ऐतिहासिकता या सच्चाई की कसोटी पर कसने के बजाय उनमें निहित कल्याणतत्त्वों को अनेक व्यवहारिक यथार्थ स्वरूप को, प्रेरकतत्त्वों को ही, हमें देखना है । कथा के माध्यम से ही व्यक्ति तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान सरलता से प्राप्त कर सकता है । उनमें रहे हुए हार्द को समझकर उन पर विश्वास करता है और उनको आचरण में लाकर अपने जीवन को कल्याणप्रद व उन्नत बनाता है । अनन्तजिन चरित भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करता है ।
भगवान अनन्तजिन के अस्तित्व को सिद्ध करनेवाले मूल स्त्रोत जैन आगम है और आगमों की घटनाओं का उत्तरोत्तर विकास उन पर लिखी गई नियुक्तियों, चूर्णियों, भाष्यों, टीकाओं में एवं परवर्ती चरित्र ग्रंथों में पाया जाता है । आगम ग्रन्थों में भ. मल्लिनाथ भ. अरिष्ट नेमि भ. पार्श्वनाथ और भ. महावीर को छोड़कर अन्य तीर्थंकर विषयक जानकारी अत्यल्प मात्रा में मिलती है । ग्यारह अंग सूत्रों में तीसरा और चौथा अंग सूत्र स्थानाङ्ग व समवायांग है । समवायांगके सूत्र १५७ में भगवान अनन्तजिन विषयक निम्र जानकारी मिलती है - भगवान अनन्तजिन १४ वें तीर्थकर थे । उनका जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके पिता का नाम सिंहसेन और माता का नाम सुजसा था । अनन्तजिन
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