Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भगवान अनन्तनाथ अयोध्यानगर के ईक्ष्वाकुवंशी काश्यप गोत्रीय महाराजा सिंहसेन राजा के पुत्र थे । आप की माता का नाम जयश्यामा था । कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा के दिन अच्युतेन्द्र देवलोक से चवकर जयश्यामा के गर्भ में अवतरित हुए । माता ने १६ स्वप्न देखे । जेठ कृष्णा द्वादशी के दिन पूषा योग में आपका जन्म हुआ। इन्द्रों, देवों
और मनुष्यों ने जन्मोत्सव किया । आपका नाम अनन्तजित् रखा । आपका शरीर ५० धनुष उँचा था । आपका रंग स्वर्ण जैसा देदीप्यमान था । सात लाख पचास हजार वर्ष बीतने पर आपका राज्याभिषेक हुआ । राज्य करते हुए पन्द्रह लाख वर्ष बीत गये तब आपने अपने पुत्र अनन्तविजय को राज्य देकर जेष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन सायंकाल में एक हजार राजाओं के साथ सागरदत्त नामकी पालकी में बैठकर बन में गये और दीक्षा धारण की । दूसरे दिन आपने विशालराजा के घर पारणा किया। दो वर्ष तक छद्मस्थ काल में विचरण कर पीपल वृक्ष के नीचे चैत्रकृष्ण अमावस्या के दिन सायंकाल के समय रेवती नक्षत्र के योग में केवलज्ञान प्राप्त किया। देवों ने केवलज्ञान उत्सव किया।
जय आदि ५० गणधर, एक हजार पूर्वधर तीन हजार दो सौ वादि, उन्तालीस हजार पाँचसौ उपाध्याय, चार हजार तीन सौ अवधिज्ञानी, पाँच हजार मनःपर्यवज्ञानी, कुल छियासठ हजार मुनि, एक लाख आठ हजार साध्वियाँ, दो लाख श्रावक एवं चार लाख श्राविकाओं की सम्पदा आपके शासन में थी । अन्त में सम्मेतशिखर पर जाकर वहाँ एक माह तक योगनिरोध कर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ आपने चैत्र शुक्ला अमावस्या के दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में निर्वाणपद प्राप्त किया।
अब तक के प्रकाशित अप्रकाशित अनन्तजिन चरित्रों में यह सब से बड़ा चरित ग्रन्थ है ।
- अपने कार्य में अत्यंत व्यस्त होते हुए भी भाषा विवेचक डॉ. एच. चू. भायानी साहब ने इस ग्रन्थ के अपभ्रंश भाग को देखा और उसे शुद्ध किया । अतः में उनका आभारी हूँ । ___ साथ ही संवेगी उपाश्रय के ट्रस्टी श्री भरताभाई शाह का भी आभार मानता हूँ जिन्होंने अपने अधीन ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध अनन्तजिन चरित्र की प्रती की जरोक्स करवाकर मुझे दी ।
ला.द.भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर का भी मैं आभारी हैं जिन्होंने इस ग्रन्थको प्रकाशित कर प्राकृत साहित्य की अनुपम सेवा की है ।
- स्पेन्द्रकुमार पगारिया
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