Book Title: Ahimsa Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 11
________________ ( १० ) दूर क्यों जाएँ ! जैन इतिहास के विश्रुत धर्मसंघ-स्थापक तीर्थंकर अरिष्टनेमि के विवाह में बरातियों को पशु-पक्षियों का माँस दिया जाने वाला था, जब अरिष्टनेमि स्वयं दुल्हा बन कर रथ में बैठे हुए विवाह के लिए जा रहे थे, तब रास्ते में उन्होंने एक बाड़े में अवरुद्ध बहुत-से पशु-पक्षियों को देखा और करुणा से द्रवित हो कर उनको बन्धनमुक्त करवाया । उनके द्वारा पालन की गई इस व्यक्तिगत अहिंसा का प्रभाव तत्कालीन यादव जाति पर अचूरूप से पड़ा। यादवजाति मानो जाग उठी । इसी प्रकार महात्मा गाँधीजी ने जो भी व्यक्तिगत सत्याग्रह आदि किए थे, उन सबके साथ वे अहिंसा को अनिवार्य रूप से ले कर चले थे, जहाँ कहीं उन्हें यह स्पष्ट प्रतिभासित होता था कि इस सत्याग्रह में मेरे द्वारा हिंसा का भाव आ गया है, भले ही वह क्रोध, रोष और द्वेष के रूप में ही क्यों न आया हो, वह उस सत्याग्रह को स्थगित कर देते थे । उनकी दृष्टि में अहिंसा केवल व्यक्तिगत उपासना या साधना की चीज नहीं थी, अपितु वह सार्वभौम थी । मानवजीवन के सभी क्षेत्रों में और सभी वर्गों के द्वारा वह आराधनीय, साधनीय थी । 1 यही कारण है कि अहिंसा - दर्शन में युगद्रष्टा राष्ट्रसंत उपाध्याय श्रीअमरमुनिजी ने शास्त्रीय भावों को वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में तौल-तौल कर बहुत ही बारीकी से युक्ति, प्रमाण, अनुभव और दृष्टान्त दे दे कर स्पष्ट कर दिया है । अहिंसा - दर्शन के प्रथम और द्वितीय संस्करण में प्रकाशित उपाध्यायश्रीजी महाराज के प्रवचन ब्यावर में हुए थे । इन पंक्तियों का लेखक भी उस समय ब्यावर ही था । मेरे ही अनुरोध पर विक्रम संवत् २००७ के ब्यावर चातुर्मास में श्रद्धय उपाध्यायश्रीजी महाराज ने उपासकदशांग - सूत्र पर व्याख्यान देना स्वीकार किया था और उन्होंने उपासक दशांग सूत्र के प्रथम अध्ययन के आधार पर अहिंसा, सत्य आदि व्रतों पर अत्यन्त विशदरूप से व्याख्यान दिए थे । उन व्याख्यानों को सुन कर सहसा दिवंगत ज्योतिर्धर आचार्यं पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज का स्मरण हो आता है । ब्यावर चातुर्मास के उन अहिंसा-सम्बन्धी प्रवचनों का सम्पादन पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने किया था । उसके बाद सन् १९५७ में उसका द्वितीय संस्करण प्रकाशित हुआ। इसके बाद अब यह तृतीय संस्करण संशोधित और परिवद्धित रूप में मेरे द्वारा सम्पादित हो कर प्रकाशित हो रहा है । इस संस्करण में श्रद्धेय उपाध्यायश्रीजी महाराज के द्वारा समय-समय पर अहिंसा के सम्बन्ध में दिये गए प्रवचन, जो श्री अमरभारती में प्रकाशित होते रहे हैं, उन्हें छाँट कर व्यवस्थित करके यत्र-तत्र जोड़ दिये गए हैं । इनमें से कुछ प्रवचन नए विषयों पर हैं, कुछ युगानुलक्षी सामयिक प्रश्नों पर अहिंसा-सम्बन्धी प्रवचन हैं । कुछ अहिंसा के विधेयात्मक पहलुओं तथा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक हिंसा-अहिंसा के परिप्रेक्ष्य में दिये गए प्रवचन हैं। मतलब यह है कि अहिंसा भगवती के सांगोपांग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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