Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2 Author(s): Dashrath Sharma Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ २. साहित्य-संस्कृत साहित्य, प्राकृत साहित्य, अपभ्रंश साहित्य, प्राचीन राजस्थानी, गुजराती एवं हिंदी साहित्य, ग्रंथकार और उनके ग्रंथ । इन निबन्धों की सूची शीघ्र ही प्रकाशित की जायेगी। ३. लोक जीवन, लोक संस्कृति, लोक-साहित्य । ४. धर्म, दर्शन अध्यात्म, आचार-विचार, लोक व्यवहार । ये निबंध देश के विभिन्न स्थानों से प्रकाशित होने वाली ४०० से ऊपर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हए हैं। इतने अधिक एवं विविध विषयक शोध-निबंध विश्व में शायद ही किसी दूसरे विद्वान् ने लिखे हों। ८. बीकानेर राज्यभर के जैन अभिलेखों (शिलालेखों, मूर्तिलेखों, धातुलेखों) का विशाल संग्रह और प्रकाशन । ९. अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का विस्तृत प्रस्तावनाओं के साथ संपादन । १०. शोधार्थियों का तीर्थस्थान नाहटाजी का स्थान शोधविद्वानों और शोधछात्रों के लिए मानो कल्पवृक्ष ही है। यही कारण है कि उनके यहाँ शोधार्थी लोग बराबर आते रहते हैं। शोधार्थियों को जो सहायक सामग्री, ग्रंथ आदि चाहिए वह अधिकतर उनके पुस्तकालय में उपलब्ध हो जाती है। यदि नहीं होती है तो ज्ञान के विश्वकोश-रूप नाहटाजी से सहज ही पता लग जाता है कि कहाँ-कहाँ उपलब्ध हो सकती है। वे स्वयं भी अनेक बार अन्यान्य स्थानों से शोधार्थी के लिए व्यवस्था कर देते हैं। कोई मुद्रित पुस्तक प्राप्त नहीं होती है तो पुस्तक को अपने पुस्तकालय में मंगवाकर उसे सुलभ कर देते हैं। अनेक बार नाहटाजी अपनी निजी प्रतियाँ भी उपयोग के लिए शोधार्थियों को भेज देते हैं। शोधार्थी विद्वानों और छात्रों को उनके यहाँ शोध-सामग्री ही नहीं प्राप्त होती किंतु निवास और भोजन की व्यवस्था भी वे प्रायः स्वयं ही अपने यहाँ कर देते हैं । शोध-छात्रों के साथ नाहटाजी का व्यवहार अतीव उदारता पूर्ण और सहानुभूति-पूर्ण होता है । वे उनकी सब प्रकार की सहायता करने को सदा तत्पर रहते है। नाहटाजी से उन्हें शोध-सामग्री और आवश्यक पुस्तकें ही प्राप्त नहीं होतीं किन्तु विषय-निर्वाचन से लेकर अंत तक निर्देशन भी मिलता है। छात्रों के घर चले जाने के बाद भी अनेक बार पत्र द्वारा उनकी प्रगति का हाल पूछते हैं और यदि नयी जानकारी ज्ञात होती है तो उसकी सूचना भी तुरंत देते हैं। शोधविद्वान् और शोधछात्र नाहटाजी के पुस्तकालय को इच्छाफल-दाता तीर्थस्थान मानते हैं। ऋषि तुल्य डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल और श्री हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने उन्हें औढरदानी बतलाया है। ११. अद्भुत स्मृति कोष ___ अद्भुत स्मरण शक्ति के धनी श्री नाहटाजी जिस ग्रंथ का भी एक बार अवलोकन कर लेते है उसके वाक्यांशों तक का संदर्भ उनके मानस पटल पर स्थायी रूप से अंकित हो जाता है । फलस्वरूप श्री नाहटाजी ने जहाँ अलभ्य ग्रंथों का संग्रहालय स्थापित किया है वहाँ वे स्वयं भी एक चलते फिरते ज्ञान भंडार, ज्ञान कोष बने हुए हैं। यह प्रकृति की आपको अनुपम देन है। १२. महान् आत्मसाधक साहित्य शोध के साथ-साथ श्री नाहटाजी आत्मानुभूति के क्षेत्र में भी संतवत् ऋषितुल्य महान् साधक हैं। प्रतिदिन प्रातः २-३ बजे से आपका स्वाध्याय, ध्यान, मनन, चिन्तन का साधना परक क्रम प्रारंभ होता है जो दिनचर्या की अन्य गतिविधियों के साथ निर्बाध रूप से रात्रि शयन तक चालू रहता है। अनुभूति की यह स्थिति विरल साधकों को ही प्राप्त होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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