Book Title: Agamsaddakoso Part 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૩૧
1. २०
भग. ५१,९६,२२८,२३२,२३४:
अंतगडदसा [अन्तकृत्दसा) मे ॥ सूत्रनाया. ६५,१७६; निर. १२, १५: આગમનું નામ उत्त. ९३०,१४४४
सूय. ६४३, ठा.९६१,९६७,९७१: अंतकरभूमि [अन्तकर भूमि] संसारनीमंत
सम. १,२१५,२२४: भग. ८००; કર્યો હોય તેવી ભૂમિ
अंत. १,२,३,६, ७.१०,१३,१४,१५.१७, नाया. १०९:
१८,२३,२६,४०,४१, ४४,४६,४८,६१; अंतकाल [अन्तकाल] भ२०७१, प्रसय
अनुत्त. १; सूय. ३०४,७८२; पण्हा. १५;
नंदी. १३४,१३८,१४६; जो.नंदी. १, उत्त. ४२८;
अ.नंदी. १; अनुओ. ४६,३९०ः अंतकिरिया [अन्तक्रिया संसार भनो संत || अंतगडदसाधर [अन्तकृत्दसाधर] तसा કરવાની ક્રિયા, સકલ કર્મક્ષય રૂપ મોક્ષ, || સૂત્રને ધારણ કરનાર પન્નવણા” સૂત્રનું એક પદ
उव. २१:
अनु. १६१; टा. ११५,२४९;
अंतगमण [अन्तगमन] छे ४jते. सम.२२२,२२३,२२५,२२७;
निर. १०; भग. ३१,८६,१८१;
अंतगय [अन्तगत अवधिशाननोले पत्र. ७,४९६ थी ४९९, ५०५;
__नंदी. ६२; उत्त. ११२७,
अंतचरग [अन्त्यचरका गुस्थे मोनपिछी नंदी. १४४ थी १४७,१४९;
વધેલ આહારનીગવેષણા કરનાર અભિગ્રહअंतकिरियापय [अन्तक्रियापद] 'अंतजिया'
ધારી સાધુ નામક પદ
नाया. ६७०; भग. ३१;
पन्न. ४९६; अंतचरय अन्त्यचरका हुमो ७५२' अंतकुल [अन्तकुल] उ प
टा. ४३०; पण्हा. ३४ ठा. ७०२; दसा. १११; || अंतचारि [अन्तचारिन्] अंत तु-७ आहार अंतक्खरिया [अन्त्याक्षरिका) अढालिपिमानी ।।
લેવાના અભિગ્રહધારી સાધુ એક લિપિ
ठा. ३७६,४९१; पत्र. १७५;
अंतजीवि [अन्त्यजीविन्] अंत तु२७ मार अंतग[अन्तक] अंत,छे, विनाश (२४, ६५
ગ્રહણ કરી જીવન ચલાવનાર સાધુ રિત્યય
सूय. ६७०
ठा. ४३० सूय. ४१०,४४३: उत्त. १२६५;
भग. ४६९; पण्हा. ३४: अंतगड [अन्तकृत हुमो ‘अंतकड'
अंतद्धाण [अनतर्धान] २४२५ थj टा. ५३,५८२,७२७,७३८,९३०;
पिंड. ५०० सम. ९९,११८,१२०,१२९,१३३,१४८,
अंतद्धाणपिंड [अन्तर्धानपिण्ड] मामाने संत१५०,१५१,१५२,१५७,१६२,१६३,१६८,१७१,
રહિત કરી આહારગ્રહણ કરવો તે १७४,१७९,१८९,१९२,२२४,२३२;
निसी. ८६२; नाया. ६७,६८,७३,१८२; जंबू. १२५;
अंतद्धाणी [अन्तर्धानी] २४श्य थवानी विद्या नंदी. १४६,१५४; अनुओ. १६१ ॥ सूय. ६६२;
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