Book Title: Agamoddharak Krutisanodh
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 207
________________ 200 आगममहिमा नरभवनिकरोऽसमफलविसरो भावितभावो गतदौःस्थ्यो, नम्रशिरस्को विगतरजस्को भवति नरस्तद्भजनमनाः // 5 // चलति जिनेशः सुरपतिविततादासनात् सिंहयुक्तात्, भविजननिचयं हतवृजिनचयं देशयस्तीर्थमार्गम् / गणधररचिते विविधनययुते शास्त्रवृन्दे विधातुं, तीर्थानुज्ञां पूजाऽक्षुण्णां दर्शयन्नागमोक्ताम् / ( प्रोत्थायाऽर्हन् विनयमनुदधदासनात् सन्दधानः ) // 6 // सुरेशा नरेशा जिनेशा न सर्व, सुसर्वज्ञतालाभमिहार्चयन्ति / अनुज्ञां परं कर्तुमिहागमानां, सदैवाद्रियन्ते गणेशितृपूजाम् // 7 // देवो गुरुर्धर्म इति त्रयं जने, भवाम्बुधेनिस्तरणाय योग्यम् / तदेव चेदागमवानिरस्तं प्रतिक्षणं संसृतिवृद्धिकारि // 8 // पूजा जिनानां शमिनां सपर्या, धर्मस्य वृत्तिविनां शिवाय / सा चेद् भवेदागमवाण्यपेक्षा, नो चेद् भवानां परिवृद्धिकी // 9 // एतदेव दुष्षमास्खलायितं, कर्म वा पचेलिमं भवद्विषाम् / दक्षिणार्धसम्भवो यदेष .ते, क्रियते सुकृतमागमादरः // 10 // पूजा जिनेश ! भवतो भविना कृता सा, सम्यग् (सेवा ) भवोदधितरिर्भवतीह जन्तोः / सामायिकादिसुकृताचरणं (महाफलं) शिवाय, चेदागमोक्तिपरमान्तरमाप्यतेऽत्र // 11 // साम्राज्यं जिनशासनस्य न भवेदभ्यर्चनादर्हतां सूरीणां सततं महादरकृते! नैव चाहन्मते /

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