Book Title: Agamoddharak Krutisanodh
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 210
________________ आगमोद्धारककृतिसन्दोहे 203 जिन ! त्वदागमा मया विलोकिता न सौख्यदा, . यतो भवा अतीतभाविदुःखभावसंभृताः / प्रदर्शितास्तकैः पुनर्मुदास्पदं तके यतो, विचूर्ण्य तान् पदं लभन्त आव्ययं ससाधनाः // 25 // मत्तो जनोऽयं जिनराट् ! सदागम-पानकपीनो न बहिर्न चान्तः / जानन् हि तत्त्वं मनुते यदाप्त-त्रिकालतत्त्वो नहि साम्प्रतेक्षी // 26 // जिनागमानां महिमोद्भवाय, त्वया श्रिता या त्वमरैस्त्वदर्थम् / सत्प्रातिहार्यैः खचिता सुपूजा, गताघभावो जिनराट् तथापि // 27 // मता गणेशा जिनराट् तवामी, सार्वज्यभावान्वितसन्मुनीन् यत् / विलय तिष्ठन्ति पुरस्तवेदं, रक्षाकरं त्वागमजं परं बलम् // 28 // वितन्वते मजुलमङ्गलावलिं, सदा जिनाद्या जगतीह दीप्राः / परं नमस्कारकृतेस्तदादौ, नमो भणन्तीह सदागमज्ञाः // 29 // नाहन्त्यं महिमांस्पदं तव जिन ! श्रित्वाऽऽमरीमहणां, नैवाऽनन्यसमां श्रियं श्रयसि सन्नाकिद्माद्भवाम् / नैवानङ्कगणेन्द्रराजिरचनालब्धप्रतिष्ठोद्भवं, किन्त्वेषाऽऽगमसन्ततिर्गतमला साक्षाद् बुधानां कृता // 30 // महत् खलु प्राप्तमिदं यशोऽभिधं, त्वया जिनेन्द्रोदितसंयमेन / . पदत्रयीमात्रमिहार्पयस्त्वं, सर्वागमानां प्रभवो विगीतः // 31 // ये प्रान्त्यमावर्त्तमुपेयिवांसो, जीचा भवे तानवतोप्रभावाः / अज्ञानभावेऽपि सदागमा ये, .कस्तान स्तुयान्नैव सतत्त्ववेत्ता // 32 // कृतघ्नतामग्नतरा अमी खलु, जीवा यदाश्रित्य ममोक्तितत्त्वम् / मामेव हास्यन्ति भवं त्यजन्त-स्तथा विदन्नागम इष्टदायी // 33 //

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