Book Title: Agamgacchiya Jinprabhsurikrut Sarva Chaitya Paripati Swadhyaya
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf

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Page 4
________________ सा. भली भ. शा सत्तरिसउ वेयड्ढ-नगेसु, Jain Education International जहिं न लहइ नीपुन्न पवेसेो ॥ १०१ तं वखारे असीई जिणवर, नाणाहि यहि मणोहर । नइ य जिगह कुरुतरु हुंति, नरउत्तर - नगि चियारि न भांति ॥ ११ ॥ कुंडल - रुगिसु चियारि चियारि, नंदीसर - वरि वीस विचारि । एगारुत्तर पाँचसयाई, भावि वंदउ सव्वि वि ताई || १२ || अट्ठ कोडि छप्पन्न य लक्ख, सत्ताणुइ सहसा इव पक्ख । पचसयई चउतीसइं अहिय, सासय चेइय एत्तिय कहिय ॥१३॥ तिरिय- लोइ पुण संखाईय, सव्वे वि जिण - सासण - विहिय । जाणि असासय सासय गेह, विधि - विहियाइ नीसंदेह ||१४|| रहनूपुर - नयराइय रम्म, वेडूढे विज्जाहर - गम्म । महाविदेहे देवहराई', खेमाइ नगराइ जाइ ||१५|| त भरहेखए खिक्ति जि तित्थ, जम्माइय कल्लोण पसत्थ । भर निवाइय कारियाई, बन्न - पमाणिहिं कण्यमयाई ॥१६॥ सिरि- अट्ठावयगिरि - सम्मेय रेवगिरि - पमुहाइ अणेय । अवज्झाउरि गयपुरि क पिल्लि, धम्मचक्क रयणमय महल्लि || १७|| सोरियपुरि वाणारसि रम्मि, सोपारइ भरुअच्छि पुरम्मि । विमलगिरी - वे भारगिरिम्मि, तामलित्ति-उज्जेणी - रम्मि ॥१८॥ ૧, પ્રતમાં આ કડીના અંતે હું ને અંક છે અને અપૂર્ણ છે, For Private & Personal Use Only ૧૧૧ www.jainelibrary.org

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