Book Title: Agamgacchiya Jinprabhsurikrut Sarva Chaitya Paripati Swadhyaya Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 5
________________ 112 સર્વ–ચય-પરિપા-િસ્વાધ્યાય चपा-महिलानगर पुरम्मि, कुडगामि जिण-जम्मण-रम्मि / सावत्थी-महुरापुरि जाई कणय रयण-मणि-मणोहराई // 19 // अब्बुअ-सिरि सच्चउर-वरम्मि, थंभणपुर-मोढेरपुरम्मि / सोहई सुदर-देवहरम्मि // 20 // त असासय-सासय-चेइयाइं, रिसहाइय- पडिम-पइट्ठियाई / गामागर-पुर-नयरोईसु, जे पणमई तहँ सहलउ दीसु // 21 // तविहरई संपइ वीस जिणिंद लोआलोअ-पयास-दिणिंद / धन्न पुन्न जे पिच्छइ निच्चु, ताण जम्मु जीविउ कयकिच्चु // 22 // गणहर-सेणी सयल वि चंग, जेहिं विरइय बारस अंग / सिरि-जिणवर-परिवार वि धन्नु, मोक्ख-मग्गु पडिपुन्नु पवन्नु // 23 // तं नंदउ चउवीसमउ जिणिंदु, वद्धमाण-पहु भुवणाणंदु / नदउ चउविह-संघु अणग्घु, जसु पहावि जिण-धम्मु अविग्घु // 24 // दव-थउ भाव-थउ जि कुणंति, ते अणंतु भव-दुहु निहणंति / सिरि-जिण-पहणिय-सयलुवसग्ग, ते लहु लहिसई सग्गऽपवग्ग // 25 // 1. अत:-इति सर्व-चैत्य-परिपाटि-स्वाध्यायो रासेन दीयते, बोल्लिका भए यते समाधिना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5