Book Title: Agamgacchiya Jinprabhsurikrut Sarva Chaitya Paripati Swadhyaya
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf

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Page 3
________________ आगमगच्छीय जिनप्रभसूरि विरचित सर्व-चैत्य-परिपाटि-स्वाध्याय जयइ जयइ जिण-धम्मो विवेय-रम्मो पणासिय-कुहम्मो । उवसमापुर-पायारो पयडिवानाणाइ-आयारो ॥१॥ तं जयइ जगि सिरि-जिणवर-विंद, जसु पय पणमइ सयल सुरिंद । परिवज्जिय-सावज्जारंभ, नरयकूव-निवडतह खभ ॥२॥ त दुल्लहु लहिउ सु माणुस-जम्मु, तह वि कह वि सिरि-जिगवर-धम्मु । तत्थ वि बोहि-बीउ पुण रम्मु, जं निहणइ दुट्ठऽट्ठ वि कम्मु ॥३॥ तं मुत्तु कुमय कुबोहु कुग्गाहु, - किं अणुसरहु न जिनवर-नाहु । तसु विणु जीवु सया व अणाहु, समय विसमय कसायह दाहु ॥४॥ ता भो भविय(या) भावउ भव-भावु, (पुण) दुलहउ सामग्गी-सब्भावु । सव्व-विश्इ जइ करण न जाइ, देस-विरइ तो धामिउ ठाइ ॥२॥ जइ बाहिर-पावह परिहारु, तोइ सारु संसारु असारु । पूअह जिणवरु भाविहिं भत्ति, देयह दाणु सुपत्तह सत्ति ॥६॥ त मोह-चरड नीधाडिय धाडि, तउ करहु चेइय-परिवाडि । भवणवई ठिय वंदह दक्ख, सत्त-कोडि बाहत्तरि लक्ख ॥७॥ त' वितर-जोइस-माझि असख, उड्ढ-लोइ चउरासी लक्ख । सत्ताणउइ सहसा तह तत्थ, तेवीसाहिय रयण पसत्थ ॥८॥ मेरुसु पचासी जिण-गेह, भवियहु पणमहु विहिय सिणेह । गयदंतेसु चेइय वीस, पव्वय वासहरेसु तीस ॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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