Book Title: Agama
Author(s): Namramuni, Gunvant Barvalia
Publisher: Global Jain Agam Mission
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ŚRĪ UPĂSAKDAŠĀNGA SUTRA
7TH ANGA SŪTRA
सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं,रोएमि णं, भते! णिग्गंथं पावयणं, एवमेयं
भंते! तहमेय भंते! अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंत! इच्छिय - पडिच्छियमेयं भते! से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कटु, जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे
राईसर-तलवर-मांडबिय-कोडुबिय-सेट्ठि-सेणावईसत्थवाहप्पभिइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, णो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता
अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणु प्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त-सिक्खावइयं दु वालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं
देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह।

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