Book Title: Agam Suttani Satikam Part 28 Uttaradhyayanaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१०
उत्तराध्ययन-मूलसूत्रम्-१-१/१ तद् द्रव्यं तत्त्वज्ञः सचेतनाचेतनं कथितम् ।।" भावश्रुतमप्यागमनोआगमभेदतो द्विधैव, तत्राऽऽगमतस्तज्ज्ञस्तत्र चोपयुक्तः, नोआगमतस्त्वेतान्येव प्रस्तुताध्ययनानि, आगमैकदेशत्वात् क्षायोपशमिकभाववृत्तित्वाच्चामीषामिति ।। स्कन्धोऽपि नामस्थापनात्मकः प्रसिद्ध एव, द्रव्यस्कन्धः आगमतस्तज्ज्ञोऽनुपयुक्तः, नोआगमतो ज्ञशरीरभव्यशरीरे, तद्यतिरिक्तो द्रुमस्कन्धादिः, भावस्कन्ध आगमतस्तज्ज्ञस्तत्रोपयुक्तः, नोआगमतः प्रक्रान्ताध्ययनसमूह इत्यलं प्रसङ्गेन ।। प्रतिज्ञातमनुसरन्नामान्याहनि.[१३] विनयसुयं च परीसह चउरगिज्जं असंखयं चेव ।
अकाममरण नियंठि ओरब्भं काविलिज्ज च।। नि.[१४] नमिपव्वज्ज दुमपत्तयं च बहुसुयपुज्जं तहेव हरिएस।
चित्तसंभूइ उसुआरिज्जं सभिक्खु समाहिठाणं च ।। नि.[१५] पावसमणिज्जं तह संजईज्ज मियचारिया नियठिज्जं ।
समुद्दपालिज्जं रहनेमियं केसिगोयमिज्जं च ।। नि.[१६] समिइओ जन्नइज्जं सामायारी तहा खलुकिज्ज ।
मुक्खगइ अप्पमाओ तव चरण पमायठाणं च ।। नि.[१७] कम्मप्पयडी लेसा बोद्धव्वे खलु नगारमग्गे य।
जीवाजीवविभत्ति छत्तीसं उत्तरज्झयणा ।। वृ.निगदसिद्धाः । नवरमाभिरध्ययनविशेषनामान्युक्तानि, एतन्निरुक्त्यादिच नामनिष्पन्ननिक्षेपप्रस्ताव एवाभिधास्यते ।। अधिकारानाहनि.[१८] पढमे विनओ बीए परिसहा दुल्लहंगया तइए।
अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमाएत्ति ।। नि.[१९] मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विज्जा चरणं च छट्ठअज्झयणे।
रसगेहिपरिच्चाओ सत्तमे अट्ठमि अलाभे॥ नि.[२०] निकंपया य नवमे दसमे अनुसासणोवमा भणिया।
इक्कारसमे पूया तवरिद्धी चेव बारसमे ।। नि.[२१] तेरसमे अनियाणं अनियाणं चेव होइ चउदसमे।
भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ ।। नि.[२२] पावाण वज्जणा खलु सत्तरसे भोगिड्ढिविजहणट्ठारे ।
एगणि अप्परिकम्मे अनाहया चेव वीसइमे।। नि.[२३] चरिया च विचित्ता इक्कवीसि बावीसिमे थिरं चरणं ।
तेवीसइमे धम्मो चउवीसइमे य समिइओ।। नि.[२४]
बंभगुण पन्नवीसे सामायारी य होइ छव्वीसे।
सत्तावीसे असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई। नि.[२५] एगुणतीस आवस्सगप्पमाओ तवो अ होइ तीसइमे।
चरणं च इक्कतीसे बत्तीसि पमायठाणाई।।
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