Book Title: Agam Suttani Satikam Part 27 Dasvaikaalika
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१२
तु प्रतिद्वारं निर्युक्तिकार एव यथाऽवसरं वक्ष्यति । तत्राधिकृतशास्त्रकर्तुः स्तवद्वारेणाद्यद्वारावयवार्थप्रतिपादनायाहनि. [१४] सेज्जभवं गणधरंजिनपडिमादंसणेन पडिबुद्धं । मनगपिअरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे ॥
वृ. 'सेज्जंभव' मिति नाम 'गणधर' मिति अनुत्तरज्ञानदर्शनादिधर्मगणं धारयतीति गणधरस्तं, 'जिनप्रतिमादर्शनेन प्रतिबद्धं' तत्र रागद्वेषकषायेन्द्रियपरीषहोपसर्गादिजेतृत्वा-ज्जिनस्तस्य प्रतिमा - सद्भावस्थापनारूपा तस्या दर्शनमिति समास:, तेन हेतुभुतेन, किम् ? - 'प्रतिबुद्धं' मिथ्यात्वाज्ञाननिद्रापगमेन सम्यक्तवविकाशं प्राप्तं 'मनकपितर' मिति मनकाख्याप-त्यजनकं ‘दशकालिकसय' प्राग्निरूपिताक्षरार्थस्य 'निर्यूहकं' पूर्वगतोद्धृतार्थविरचनाकर्त्तारं 'वन्दे' स्तौमि इति गाथाक्षरार्थः ॥
दशवैकालिक - मूलसूत्रं
44
भावार्थः कथानकादवसेयः, तच्चेदम्-एत्थ वद्धमानसामिस्स चरमतित्थगरस्स सीसो तित्थसामी सुहम्मो नाम गणधरो आसी, तस्सवि जंबूनामो, तस्सवि य पभवोत्ति, तस्सऽन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तम्मि चिंता समुप्पन्ना को मे गणहरो होज्जत्ति ?, अप्पणो गणे य संघे य सव्वओ उवओगो कओ, न दीसइ कोई अव्वोच्छित्तिकरो, ताहे गारत्थेसु उवउत्तो, उवओगे कर रायगिहे सेज्जंभवं माहणं जन्नं जयमाणं पासइ, ताहे राअगिहं नगरं आगंतूणं संघाडयं वावारेइ-जन्नवाडगं गंतुं भिक्खट्ठा धम्मलाहेह, तत्थ तुब्भे अदिच्छाविज्जिहिह, ताहे तुब्भे भणिज्जइ - " अहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते' इति, तओ गया साहू अदिच्छाविया अ, तेहि भणिअं'अहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते', तेन य सेज्जं भवेण दारमूलेठिएण तं वयणं सुअं, ताहे सो विचिते - एए उवसंता तवस्सिणो असच्चं न वयंतित्तिकाउं अज्झावगसगासं गंतुं भणइ - किं तत्तं ?, सो भणइ - वेदाः, ताहे सो असिं कड्डिऊण भणइ-सीसं ते छिदामि जइ मे तुमं तत्तं न कहेसि, तओ अज्झावओ भणइ - पुण्णो मम समओ, भणियमेयं वेयत्थे-परं सीसेच्छेए कहियव्वंति, संपयं कहयामि जं एत्थ तत्तं, ताहे सो तस्स पाएसु पडिओ, सो य जन्नवाडओवक्खेवो तस्स चेव दिन्नो, ताहे सो गंतूणं ते साहू गवेसमाणो गओ आयरियसगासं, आयरियं वंदित्ता साहुणो (य) भणइ-मम धम्मं कहेह, ताहे आयरिया उवउत्ता- जहा इमो सोत्ति, ताहे आयरिएहिं साहुधम्मो कहिओ, संबुद्धो पव्वइओ सो, चउद्दपुवी जाओ ।
जयाय सो पव्वइओ तया य तस्स गुव्विणी महिला होत्था, तम्मि य पव्वइए लोगो निपल्लओ तंतमस्सति - जहा तरुणाए भत्ता पव्वइओ अपुत्ताए, अवि अत्थि तव किंचि पोट्टेत्ति पुच्छइ, सा भणइ उवलक्खेमि मनगं, तओ समएण दारगो जाओ । ताहे निव्वत्तबारसाहस्स नियल्लगेहिं जम्हा पुच्छिज्जतीए मायाए से भणिअं 'मनगं 'ति तम्हा मनओ से नामं कयंति । जया सो अट्टवारिसो जाओ ताहे सो मातरं पुच्छइ - को मम पिआ?, सा भणइ - तव पिआ पव्वइओ, ताहे सोदाओ नासिऊणं पिउसगासं पट्टिओ । आयरिया य तं कालं चंपाए विहरंति, सोऽवि अ दारओ चंपयमेवागओ, आयरिएण य सण्णा भूमिं गएण सो दारओ दिट्ठो, दारएण वंदिओ आयरिओ, आयरियस्स य तं दारगं पिच्छंतस्स नेहो जाओ, तस्सवि दारगस्स तहेव, तओ आयरिएहिं पुच्छियंभो दारगा ! कुतो ते आगमनंति ?, सो दारगो भणइ - रायगिहाओ, आयरिएण भणियंरायगिहे
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