Book Title: Agam Suttani Satikam Part 16 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 379
________________ ३७६ निशीथ-छेदसूत्रम् -२-१३/८४८ चू-साहू भणति - दस दारगो खीराहारो छुहतो रोवति, ता तुमं अन्न वावारं मोत्तुंइमंताव दारगंथणतोखीरं पज्जेहि।एवं कतेमज्झंआसापूरणं कयं होति, मज्झ विभिक्खं पच्छा दाहिसि एयंमि तित्ते । अहवा भणति - भिक्खाए वि मे अलं, परं एवं पजेहि । अहवा भणाति - पुणो भिखानिमित्तं एहामि, इदानि एयं पाएहि ॥ इमंच अन्न भणाति[भा.४३७८] मतिमं अरोगि दीहाउओ य होति अविमाणितो चालो । दुल्लभयं खुसुतमहं, पजेहि अहं व से देमि। घू-बालो बालभावे वि अविमाणितो मतिमं भवति, अरोगो भवति, दीहाउगो य भवति । विमाणितो पुण मंदबुद्धी सरोगो अप्पाउतो ।तं मा विमाणेहि, अन्नं च दुल्लबो पुत्तजम्मो, तं एवं पज्जेहि थणं । अहवा- गवादिखीरं करोडगे छोढुं देहि, अहमेतं पज्जामि॥ साधुस्स धाइत्तणं करेंतस्स इमे दोसा[भा.४४७९] अहिकरण भद्दपंता, कम्मुदय गिलाणए य उड्डाहो । चड़गारी य अवन्नो, नीया अन्नो वनं संके॥ घू-असंजतो पासितो अधिकरणं कम्मबंधपरूवणा य कुलमड्डियादिण भद्दपंतदोसा य । भद्ददोसा - एस तवस्सी अप्पणो गिहं चइत्ता अम्होवरि नेहं करेति विसेसेण, से भत्तपाणादी देज्जह । अगारी वा संबंधं गच्छति । पंतदोसा - अप्पणो असुभकम्मोदएण गिलाणो जातो सो बालो, ताहे भणति - किं पि एरिसं समणेण दिन्नं जेण गिलाणो जातो, एवं जनवाए उड्डाहो - "एतेकम्मणकारगा।" अहवा भणेज्जा-एते अदिन्नदानाभिक्खानिमित्तंचाईं करेंति, एवमादि लोए अवन्नं वदेज्ज । अहवा - तस्स अगारीए सयणा अन्नो वा सयणो संकेज्जा-नूनं एस संजतो एतीए अगारीए सह अनायारं सेवतिजेण से पुत्तभंडादि भुंजावे ति॥ अहवा - इमो धातिकराण विगप्पो[भा.४३८०] अयमपरो उ विगप्पो, भिक्खायरि सड्डि अद्धिती पुच्छा। दुक्खसहायविभासा, हितं मे धातित्तणं अज्जो॥ घू-धातिकरणे पुव्विल्लविकप्पातो इमोअवरो अन्नो विगप्पो भन्नति- एगस्स साधुस्स एगा अगारी उवसमति, अन्नया सो तीए घरं भिक्खाए गतो, दिट्ठा य तेन साधुणा सा सड्डी विमणी उस्सुयमणी अद्धितिमंती। ताहे सो साहू पुच्छति - किं निमित्तं विमणा - सा भणति - किं तुझ मम संतियेण दुक्खेण । भणियंच॥१॥ जोयण दुक्खं पत्तो, जो य न दुक्खस्स निग्गहसमत्थो । जोयण दुहिए दुहिओ, न हु तस्स कहिजउ दुक्खं ॥ ॥२॥ साहू भणइ-अहयं दुक्खं पत्तो, अहयं दुक्खस्स निग्गहसमत्थो। ____ अहयं दुहिए दुहिओ, ता मज्झ कहिजउ दुक्खं ॥ सा "दुक्खसहायविभास"त्ति । ताहे सा सड्डी भणइ - जति तुमं दुक्खनिग्गहसमत्थो तो कहेमि, अमुगधरे मे धातित्तणं आसी, तत्थ तेन धाइत्तणेण सुहं जीवंती आसी, अज्ज मे तं फेडियं, अन्ना तत्थ ठविया तेनऽम्हि अज्ज संचिंता ॥ तहे साधू तं पुच्छत इमेहिं तं[भा.४३८१] वय-गंड-थुल्ल-तणुय-तणेहि तं पुच्छियं अयाणंतो। तत्थ गतो तस्समखं, भणाति तं पासिउं बालं॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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