Book Title: Agam Suttani Satikam Part 16 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 15
________________ निशीथ-छेदसूत्रम् -२-७/५४३ कायनिप्फन्नं च। [भा.२३०८] पुढवीमादीएसुं, माउग्गामे उ मेहुणट्ठाए। जे भिक्खू निसियावे, सो पावति आणमादीणि ॥ [भा.२३०९] बितियपदमणप्पज्झे, अप्पज्झे वा विदुविध तेइच्छे । अमिओग असिव दुब्भिक्खमादिसूजा जहि जतणा॥ मू. (५४४) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा पलियंकंसि वा निसीयावेज वा तुयट्टावेज वा, निसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिजति ॥ मू. (५४५) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वापलियंकंसिवा निसीयावेत्ता वातुयट्टावेत्ता वाअसनंवा पानं वा खाइमंवा साइमंवा अनुग्घासेज वा अनुपाएज वाअनुग्धासंतं वा अनुपाएंतं वा सातिजति ॥ चू-एगेण ऊरूएणं अंको, दोहिं पलियंको । एत्थ जो मेहुणट्ठाए निसियावेति तुयट्टावेति वा का । ते चेव दोसा । दिढे संकादिया गेण्हणादिया दोसा । अनु पश्चादभावे, अप्पणा असितुंपच्छा तीए ग्रासं देति, एव करोडगादीसु अप्पणा पाउं पच्छा तं पाएति। [भा.२३१०] अंके पलियंके वा, माउग्गामं तु मेहुणट्ठाए। जे भिक्खू निसियावे, सो पावति आणमादीणि ॥ [भा.२३११] बितियपदमणप्पज्झे, अप्पज्झे वा विदुविध तेइच्छे। अभिओग असिव दुब्भिक्खमादिसू जा जहिं जतणा। मू. (५४६) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा परियावसहेसु वा निसीयावेज वा तुयट्टावेज वा, निसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिजति॥ मू. (५४७) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसु वा परियावसहेसुवा निसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्त वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा अनुग्धासेज वा अनुपाएज्ज वा अनुग्घासंतं वा अनुपाएंतं वा सातिजति । चू-दो सुत्ता । अर्थ तृतीयोद्देशके पूर्ववत् । नवरं - मेहुणवडियाएका । [भा.२३१२] आगंतागारादिसु, माउग्गामं तु मेहुणट्ठाए। जे भिक्खू निसियावे, सो पावति आणमादीणि ॥ [भा.२३१३] बितियपदमणप्पज्झे, अप्पज्झे वा वि दुविध तेइच्छे । अभिओग असिव दुब्भिक्खमादिसूजा जहिं जतणा॥ मू. (५४८) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नतरं तेइच्छंआउट्टति, आउटुंतं वा सातिजति॥ चू-अन्नवरंनाणचतुविधाए तिगिच्छाए-वादिय-पेत्तिय-संभिय-सन्निवातियाए आउट्टति नाम करेतिङ्का । जा वि सत्यधंसणपीसणविराहणा, जं च सा पउणा असंजमंकाहिति । अहवा - से अविरओ पासेज्ज ताहे सो भणेज्ज - केणेस तिगिच्छं कारावितं? अन्नतरस्स पदोसं गछेज्ज । [भा.२३१४] अन्नतरं तइच्छं, माउग्गामं तु मेहुणट्ठाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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