Book Title: Agam Suttani Satikam Part 16 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 13
________________ १० निशीथ - छेदसूत्रम् -२-७/५२२ फुमेतं वा रएंतं वा सातिज्ञ्जति ॥ मू. (५२३) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स दीहाइं उत्तरोट्ठाई कप्पेज्ज वा संठवेज वा, कप्पेतं वा संठवेतं वा सातिज्जति ॥ मू. (५२४) जे भिक्खू मागउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स दीहाई अच्छिपत्ताइं कप्पेज वा संठवेज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। मू. (५२५) जे भिक्खू माउग्गामस्सम मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि आमज्जेज वा पमज्जेज वा, आमजंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति । मू. (५२६) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि संबाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संबाहेतं वा पलिमद्देतं वा सातिज्जति ।। मू. (५२७) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेंतं वा सातिज्जति ॥ मू. (५२८) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि लोद्धेण वा कक्क्रेण वा उल्लोलेज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वद्वेतं वा सातिज्जति ।। मू. (५२९) जे भिक्खू माउग्गाम्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएजवा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।। मू. (५३०) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज वा, फुतं वा रतं वा सातिज्जति ॥ मू. (५३१) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स दीहाई भुमग-रोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ मू. (५३२) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स दीहाइं पास-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। मू. (५३३) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा नीहरेज वा विसोहेज्ज वा, नीहरेंतं वा विसोर्हेतं वा सातिज्ञ्जति ।। मू. (५३४) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स अच्छि - मलं वा कण्णमलं वा दंत-मलं वा नह-मलं वा नीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा नीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ मू. (५३५) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अन्नमन्नस्स गामानुगामं दूइज्जमाणे सीस-दुवारियं करेइ, करेंतं वा सातिजति ॥ चू- अन्नमन्नस्स पाए पमज्जति, इमो साहू इमस्स, इमो वि इमस्स । दोण्ह वि एस संकप्पोमाउग्गामस्स अभिरमणिज्जा भविस्सामो त्ति काउं । [भा.२३०४] पायप्पमज्जणादी, सीसदुवारादि जो गमो छट्टे । अन्नोन्नरस तु करणे, सो चेव गमो उ सत्तमए ॥ [भा. २३०५] बितियपदमणप्पज्झे, अप्पज्झे वा वि दुविध तेइच्छे। अभिओग असिव दुब्भिक्खमादिसू जा जहिं जतणा ।। [भा. २३०६ ] अन्नोन्न-करण- वज्जा, जे सुत्ता सत्तमम्मि उद्दिट्ठा । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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