Book Title: Agam Suttani Satikam Part 05 Bhagvati
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 537
________________ ५३४ भगवतीअगसूत्रं १०/-/३/४८२ ___-शतकं-१० उद्देशकः-३:द्वितीयोद्देशकान्ते देवत्वमुक्तम्, अथ तृतीये देवस्वरूपमभिधीयते, इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् मू. (४८२) रायगिहे जाव एवं वयासी-आइडीए णं भंते ! देवे जाव चत्तारि पंच देवावासंतराइंवीतिकंते तेण परं परिड्डीए?, हंता गोयमा! आइडीएणंतंचेव, एवं असुरकुमारेवि, नवरं असुरकुमारावासंतराइं सेसंतं चेव, एवं एएणं कमेणं जाव थणियकुमारे, एवं वाणमंतरे जोइसवेमाणिय जाव तेण परं परिड्डीए। अप्पड्डिएणं भंते ! देवे से महड्डियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं वीइवइजा?, नो तिणढे समढे समिड्डीएणं भंते ! देवे समड्डियस देवस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?, नो तिणढे समढे, पमत्तं पुण वीइवएजा। सेणंभंते! किं विमोहित्तापभूअविमोहित्तापभू?, गोयमा! विमोहेत्तापभूनोअविमोहेत्ता पभू। सेभंते! किं पुट्विं विमोहेत्ता पच्छा वीइवएज्जा पुट्विं वीइवएत्ता पच्छ विमोहेजा?, गोयमा पुट्विं विमोहेत्ता पच्छा वीइवएज्जा नो पुट्विं वीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा । महिड्डीए णंभंते ! देवे अप्पड्डियस्स देवस्स मझमझेणं वीइवएजा? हंता, वीइवएज्जा। सेणंभंते! किं विमोहित्तापभूअविमोहेत्तापभू?, गोयमा! विमोहेत्ताविपभूअविमोहेत्तावि पभू । से भंते! किं पुच्विं विमोहेत्ता पच्छा वीइवइजा पुट्विं वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा?, गोयमा पुट्विं वा विमोहेत्ता पच्छा वीइवएज्जा पुट्विं वा वीइवएत्ता पच्छा विमोहेजा। अप्पिडिएणं भंते! असुरकुमारे महड्डीयस्स असुरकुमारस्स मज्झमझेणं वीइवएज्जा ?, नो इणढे समढे, एवं असुरकुमारेवि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा जहा ओहिएणं देवेणं भणिया, एवं जाव थणियकुमाराणं, वाणमंतरजोइसियवेमाणिएणं एवं चेव।। अप्पडिए णं भंते ! देवे महिड्डियाए देवीए मज्झमझेणं वीइवएज्जा ?, नो इणढे समढे, समड्डिए णं भंते ! देवे समिडीयाए देवीए मज्झंमज्झेणं० एवं तहेव देवेण य देवीण य दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाए । अप्पड्डिया णं भंते ! देवी महड्डीयस्स देवस्स मज्झमज्झेणं एवं एसोवितइओदंडओ भाणियव्वोजाव महड्डिया वैमाणिणीअप्पड्डियस्स वेमाणियस्समझंमज्झेणं वीइवएजा?, हंता वीइवएज्जा। अप्पड्डिया णं भंते! देवी महिड्डियाए देवीए मझमझेण वीइवएज्जा ?, नो इणढे समढे, एवं समड्डिया देवी समड्डियाए देवीए, तहेव, महड्डियावि देवी अप्पड्डियाए देवीए तहेव, एवं एक्केके तिन्निर आलावगाभाणियव्वजाव महडिया गंभंते! वेमाणिणीअप्पड्डियाएवेमाणिणीए मझमज्झेणं वीइवएज्जा ?, हंता वीइवएजा। साभंते! किं विमोहित्ता पभूतहेवजावपुबिंवा वीइवइत्तापच्छा विमोहेजा एएफ्तारिदंडगा॥ वृ. 'रायगिहे' इत्यादि, 'आइडीएणं'तिआत्मद्धर्या स्वकीयशक्त्या, अथवाऽऽत्मन एव ऋद्धिर्यस्यासावात्मर्द्धिकः “देवे'त्तिसामान्यः 'देवावासंतराईतिदेवावासविशेषान् वीइक्कते'त्ति 'व्यतिक्रान्तः' लचितवान्, क्वचिद् व्यतिव्रजतीति पाठः, 'तेण परं'ति ततः परं परिड्डीए'त्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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