Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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ततोऽवी तं तस्स निष्फल्॥५॥ सालंपि भन्नई पावं, जं नालोइयनिंदियं। न गरहियं न पच्छित्तं, क्यं जं जहय भाणियं॥६॥|| मायाडंभमकत्तव्वं, महापच्छन्नपावया। अयजमणायारं च, सालं कश्मट्ठसंगहो ॥७॥ असंजमं अहम्मं च, निसीलऽव्वतताविय। सकलुसत्तमसुद्धी य, सुक्यनासो तहेव य॥८॥ दुग्गइगमणऽणुत्तारं, दुक्खे सारीरमाणसे। अव्वोच्छिन्ने य संसारे, विगोवणया महतिया॥९॥ केसिं विरूवरूवत्तं, दारिद्दय(६) दोहग्गया। हाहाभूयसवेयणया, परिभूयं च जीवियं ॥२०॥ निम्णि नित्तिंस कूरत्तं, निद्दय निक्विव्याविया निल्लज्जत गूढहियत्तं, वंकं विवरीयचित्तया॥१॥ रागो दोसो य मोहो य, मिच्छत्तं घणचिकणी संभग्गणासो तहय, एगेजस्सित्तमेवय॥२॥ आणाभंगमबोही य, ससल्लत्ता य भवे भवे। एमादी पावसालस्स, नामे एगठिया बहू ॥३॥ जेणं सल्लियहिययस्स, एगस्सी बहु भवंतरे। सव्वंगोवंगसंधीओ, पसलंति पुणो पुणो॥४॥ से दुविहे समक्खाए, सहले सुहुमे य बायरे। एक्केके तिविहे णे, धोरुग्गुग्गतरे तहा॥५॥ घोरं चउव्विहा माया, धोरुग्णं माणसंजुया। माया लोभो य कोहो य, घोरुग्गुग्गयर मुणे॥६॥ सुहुमबायरभेएणं, सप्पभेयंपिमं मुणी। अइरा समुद्धरे खिध्यं, ससल्लो णो वसे खणं॥७॥खुड्डलगित्ति अहिपोए सिद्धत्थयतुल्ले सिही। संपलागे खयं णेइ, वि पुढे विजोडई॥८॥एवं तणुतणुयरं, पावसल्लमणुद्धियो भवभवंतरकोडीओ, बहुसंतावपदं भवे॥९॥ भयवं! सुदुद्धरे एस, पावसल्ले दुहप्पए। उद्धरिउपि ण याणंती, बहवे जहमुद्धरिजइ॥३०॥ गोयम! निम्मूलमुद्धरणं, निययमेतस्स भासियो सुदुद्धरस्सावि सल्लस्स, सव्वंगोवंगभेदिणो॥१॥ सम्मइंसणं पढम, सम्मं नाणं बिइजियो ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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