Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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॥श्री महानिशीथसूत्रम्॥
| ॐ नमो तित्थस्स, ॐ नमो अहंताणी सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायंइह खलु छउभत्थसंजमकिरियाए वट्टमाणे
जे णं केई साहू वा साहुणी वा से णं इमेणं परमतत्तसारसब्भूयत्थपसाहगसुमहत्थातिसयपवरवरमहानिसीहसुयखंधसुयाणुसारेणं तिविहंतिविहेणं सव्वभावतरंतरेहिं णं णीसल्ले भविताणं आयहियट्ठाए अच्चंतधोरवीरुग्गकट्ठत्वसंजमाणुढाणेसु सव्वपमायालंबणविष्यमुक्के अणुसमयमहण्णिसमणालसत्ताए सययं अणिविण्णे अणूण( णण्ण परमसद्धासंवेगवेग्गभग्गगए णिणियाणे अणिगूहियबलविरियपुरिसकारपरक्कमे अगिलाणीए वोसट्टचत्तदेहे सुणिच्छिए एगग्गचित्ते अभिक्खणं अभिरभिज्जा॥ णो णं रागदोसमोहविसयकसायनाणालंबणाणेगप्पमायइड्ढिरससायागारवरोद्दऽट्टझाणविगहामिच्छत्ताविरइदुट्ठजोगअणाययण सेवणाकुसीलादिसंसग्गीपेसुण्णऽभक्खाणकलहजातादिमयमच्छरामरिसमभीकारअहंकारा दिअणेगभेयभिण्णतामसभावकलुसिएणं हियएणं हिंसालियचोरिक्कमेहुणपरिग्गहारंभसंकप्पादिगोयर अन्झवसिए घोरपयंडमहारोघणचिक्षणपावकम्ममललेवखवलिए
असंवुडासवदारे।। एकखणलवमुत्तणिभिसणिभिसद्धब्भंततरमवि ससल्ले विरत्तेज्जा तंजहा।३। 'उवसंते सव्वभावेणं, विरत्ते || श्री महानिशीथसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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