Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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य जया भवे। सव्वत्थ विसए आया, रागेतरमोहवजिरे॥१॥ त्या संवेगमावण्णे, पारलोइयवत्तणिी एगग्गेणेसती संभ, हा मओ कत्थ गच्छिहं?॥२॥ को धम्मो को वओ णियमो, को तवो मेऽणुचिडिओ। किं सील धारियं होज, को पुण दाणो पयच्छिओ?॥३॥ जस्साणुभावओऽण्णत्थ, हीणमन्झुत्त कुले। सग्गे वा मणुयलोए वा, सोक्खं रिद्धिं लभेज्जऽहं ॥४॥ अहवा किंच विसाएणं?, सव्वं जाणामि अत्तियो दुच्चरियं जारिसो वाऽहं, जे मे दोसा य जे गुणा॥५॥ घोरंथयारपायाले, गमिस्सेऽहमणुत्तरे। जत्थ दुक्खसहस्साई,ऽणुभविस्सं चिरं बहू ॥६॥ एवं सव्वं वियागंते, धमाधम्म सुहासु( हं दु हो अत्थेगे गोयमा! पाणी, जे मोहाऽऽयहियं न चिट्ठए॥७॥ जे याऽवाऽऽयहियं कुजा, कत्थई पारलोइयो मायाडंभेण तस्सावी, सयभवी( भ्यी) तं न भावए॥८॥ आया | ममेव अत्ताणं, निउणं.जाणे जहट्ठियो आया चेव दुप्पत्तिजे, धम्ममविय अत्तसक्खियं ९॥ जं जस्साणुमयं हिए सो तं ठावेइ सुंदरपएसुो सदूली नियतणए तारिस कूरेवि मत्रइ विसिटे॥१०॥ अत्तत्तीयाऽसभिच्चा सयलपा( यज )णिणो कप्पयंतऽप्पणप्पं, दुटुं वइकायचेटु मणसि य खलु संसंजुयं ते चरते। निहोस तं च सिटे ववशयकलुसे पक्खवायं विभुच्चा, विक्वंतच्चंतपावं | कलुसियहिय्यं दोसजालेहिं गहुँ ॥१॥ प्रमत्थं तत्तसिद्ध, सब्भूयत्थपसाहगी तब्भणियाणुट्ठाणेणं, ते आया रंजए सकं ॥२॥ ते सुत्तमं भवे धम्म, उत्तमा तवसंपया। उत्तमं सीलचारित्तं, उत्तमा य गती भवे॥३॥ अत्थेगे गोयमा! पाणी, जे एरिसमवि कोडिं गए। ससल्ले चरती धर्म, आयहियं नावबुझई॥४॥ ससल्लो जइवि कठुग्गं, घोरं वीरं तवं चरे। दिव्वं वाससहस्संपि, ॥ श्री महानिशीथसूत्र ।
पू. सागरजी म. संशोधित
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