Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चउत्थं चउत्थमायम्बिलं कमसो॥२७॥ संकाइएसु देसे खमणं भिच्छोक्वूहणाइसु य । पुरिमाई खमणन्तं भिक्खु-प्पभिई व चउण्हं॥| २८॥एवं चिय पत्तेयं उबवूहाई॥म करणे जइणं आयामन्तं निव्वीइगाइ पासत्थ-सड्ढेसु ॥२९॥परिवाराइ-निमित्तं भमत्त-परिपालणाइ वच्छल्ले। साहमिओ त्ति संजम-हे वा सव्वहिं सुद्धो ॥३०॥ एगिन्दियाण घट्टणमगाढ-गाढ-परियावणुद्दवणे। निव्वीयं पुरिमर्छ आसणमायामगं कमसो॥३१॥ पुरिमाई खमणन्तं अणन्त-विगलिन्दियाण पत्तेयी पञ्चिन्दियभिम एगासणाइकल्लाणय महेगं ॥३२॥ मोसाइसु मेहुण - वजिएसु दव्वाइ-वत्थु-भिन्नेसु। हीणे मझुक्कोसे आसणमायाम-खभाई ॥ ३३॥ लेवाडय-परिवासे अभत्तहो | सुक्क -सन्निहीए या इयराए छ?-भत्तं, अट्ठमगं सेस-निसिभत्ते ॥ ३४॥ उद्देसिय-चरिम-तिगे कम्मे पासण्ड-स-घर-भीसे यो बायरपाहुडियाए सपच्चवायाहडे लोभे ॥३५॥ अइरं अणन्त-निक्खित्त-पिहिय-साहरिय-मीसयाईसो संजोग-स-इंगाले दुविह-निमित्ते या खमणं तु॥३६॥ कम्मुद्देसिय-भीसे धायइ-पगासणाइएसुं चोपुर-पच्छ-कम्म-कुच्छिय-संसत्तालित्त-कर-भत्ते ॥ ३७॥ अइरं परित्तनिक्खित्त-पिहिय-साहरिय-भीसयाईसु। अइमाण-धूम-कारण विवजए विहिय मायाम ॥ ३८॥ अझोयर-कड-पूइय-मायाऽणन्ते परंपरगए यो भीसाणन्ताणन्तरगया इ० चे गमासणयं ॥३९॥ ओह-विभागुहेसोवगरण-पूईय-ठविय-पागडिए। लोउत्तर-परियट्टियपभिच्च-प्रभावकीएय ॥ ४०॥ सग्गामाहड-दर-जहन्न-मालोहडोझरे पढमे। सुहुम-तिगिच्छ-सन्थव-तिग-मक्खिय-दायगो वह५॥४१॥ पत्तेय-परंपर-ढविए-पिहिय-भीसे अणन्तराईसु। पुरिमटुं संकाए जं संकइ तं समावज्जे ॥ ४२॥ इत्तर-दविए सुहमे | ॥ श्री जीतकल्प सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal Use Only

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