Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ॥ ११॥ आभोगेण वि तणुएसु नेह-भय-सोग- बाउसाईसु। कन्दप्प-हास - विगहाईसु नेयं पडिकमणं ॥ १२ ॥ संभम-भयाउरावइ - सहसाऽणाभोगणय्य - वसओ वा । सव्व-वयाईयारेतदु भयमा संकिए चेव ॥ १३ ॥ दुच्चिन्निय-दुब्भासिय- दुच्चिट्ठिय- एवमाइयं बहुसो । उवउत्तो वि न जाणइ जं देवसियाइ - अइयारं ॥ १४ ॥ सव्वेसु वि बीय-पए दंसण-नाण-चरणा वराहेसु । आउत्तस्स तदुभयं सहसक्काराइणा चेव ॥ १५ ॥ पिण्डोवहि- सेज्जाई गहियं कडजोगिणो वउत्तेण । पच्छा नायमसुद्धं सुद्धो विहिणा विगिञ्चन्तो ॥ १६ ॥ कालऽद्धाणाइच्छिय - अणुग्गयत्थमिय - गहियमसढो । कारण- गहि-उव्वरियं भत्ताइ - विगिञ्चियं सुद्धो ॥ १७॥ गमनागमण-विहारे सुयम्मि सावज्ज-सुविणयाईसु । नावा-नई- सन्तारे पायच्छितं विउस्सग्गो ॥ १८ ॥ भत्ते पाणे सयणासणे य- अरिहन्त-समण-सेज्जासु । उच्चारे पासवणे पणवीसं होन्ति ऊसासा॥ १९ ॥ हत्थ-सय-वाहिराओ गमणाऽऽगमणाइएस पणवीस। पाणिवहाई- सुविणे सयमट्ठसयम चउत्थमि ॥ २० ॥ देसिय-राइय-पक्खिय- चाउम्मास - वरिसेसु परिमाणं । सयमद्धं तिन्नि सया पंच-सयट्टुत्तर सहस्सं ॥ २१ ॥ उद्देससमुद्दे से सत्तावीसं अणुण्ण वणियाए। अट्ठेव य ऊसासा पट्टवण-पडिक्कणमाई ॥ २२ ॥ उद्देसझयण-सुयक्खन्धंगेसु कमसी पमाइस्स । कालाइकमणाइसु नाणायाराइयारेसु ॥ २३ ॥ निव्विगइय-पुरिमड्ढेगभत्त-आयंबिल चणागाढे। पुरिमाई खमणन्तं आगाढे; एवमत्थे वि ॥ २४ ॥ सामन्नं पुण सुत्ते मयमायामं चउत्थमत्थम्मि। अप्पत्ताऽपत्ताग्वत्त-वायुणुद्देसणाइसु य ॥ २५ ॥ कालाविसजणाइसु मण्डलि - वसुहाऽपमज्जणाइसु यो निव्वीइयमकरणे अक्ख-निसेज्जा अभत्तट्ठो ॥ २६ ॥ आगाढाणा गाढम्मि सव्व-भंगे य देस-भंगे या जोगे छट्ठ॥ श्री जीतकल्प सूत्रं ॥ २ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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