Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|| ससणिद्ध-ससरक्ख-भक्खिए चेवो भीसपरंपर-ढवियाइएसु वीएसु याविगई॥ ४३॥ सहसाऽणाभोगेणव जेसु पडिक्कमणमभिहिया तेखु। आभोगओत्ति बहुसो-अइप्यमाणे य निविगई॥४४॥ थावण-डेवण-संधरिस-गमण-किड्डा-कुहावणाईसु। उक्कुट्ठि-गीयछेलिय-जीवरूयाईसु य चउत्थं ॥ ४५॥ तिविहोवहिणो विच्चुय-विस्तारियऽपहियानिवेयणए। निव्वीय-पुरिममेगासणाइ, सबम्मि| चायाम ॥४६॥ हारिय-धो-उग्गभियानिवेयणा दिन्न-भोग-दाणेसुआसण-आयाम-चउत्थगाइ, सव्वम्मि छटुं तुं॥४७॥ मुहणन्तयरयहरणे फिडिए निव्वीययं च्उत्थं च नासियहारविए वा जीएण चउत्थ-छट्ठाई ॥४८॥ कालद्धाणाईए निव्विइयं खमणमेव परिभोगे। अविहि-विगिञ्चणियाए भत्ताईणं तु पुरिमटुं ॥ ४९॥ पाणस्सासंवरणे भूमि-ति-गापेहणे य निविगई। सव्वस्सासंवरणे अगहरण-भंगे य पुरिमढें ॥५०॥ एयं चियसामन्नं तवपडिमाऽभिग्गहाइयाणं पि। निव्वीयगाइ पक्खिय-पुरिसाइ-विभागओ नेयं ॥ ५१॥ फिडिए सयभुस्सारिय भग्गे वेगाइ वन्दणुस्सग्गी निव्वीइय-पुरिभेगासणाइ, सव्वेसु चायामं ॥५२॥ अकएसु य पुरिमासण-| आयाम, सव्वसो चउत्थं तु। पुव्वमपेहिय-थण्डिल-निसि-वोसिरणी दिया सुवणे॥५३॥ कोहे बहुदेवसिए आसवककोलगाइएसुंच लसुणाइसु पुरिभडं, तन्नाई-बन्ध-भुयणी ५ ॥५४॥अझुसिरतणेसु निव्वीइयं तु, सेस-पणएसु पुरिमड्ड अपडिलेहिय-पणए आसणयं, तस-वहे जं च ॥५५॥ तवणमणापुच्छाए निव्विसओ विरिय-गृहणाए यो जीएणेक्कासणयं, सेसय-मायासु खमणं तु॥५६॥ दप्पेणं पञ्चिन्दिय-वोरमणे संक्लिट्ठ-कम्मे यादीहऽद्धाणासेवी गिलाण-प्यावसाणे य॥५७॥ सव्वोवहि-कप्पम्मि य पुरिभत्ता पेहणे य ॥श्री जीतकल्प सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित
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