Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निम्वियाईयं ॥७३॥आउट्टियाइ दप्पथ्यमाय-कप्पेहि वा निसेवेजा।दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो ॥७४॥ जंजीयदाणमुत्तं एयं पायं पमायसहियस्सो एत्तो च्चिय ठाणन्तरभेगं वड्डेज दप्पवओ॥ ७५॥ आउट्टियाइ ठाणन्तरं च, सट्टाणमेव वा देजा। कप्पेण पडिक्कमणं तदुभयमहवा विणिहिटुं ॥७६॥आलोयण-कालम्भि वि संकेस-विसोहि-भावओ नाहीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देजाहि ॥७७॥ इति दव्वाइ-बहु-गुणे गुरू-सेवाए य बहुतरं देना होणतरे हीणतरं, हीणतरे जाव झोस ति॥ ७८॥झोसिज्जइ सुबहं पि हु जीएणऽन्नं तवारिहं वहओ। वेयावच्चकरस्स य दिज्जइ साणुग्गहतरं वा॥७९॥ तव-गविओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो योतवसा य जो न दम्मइ अइपरिणामप्यसंगी य ॥८०॥सुबहत्तर-गुण-भंसी छेयावत्तिसु पसजमाणो योपासत्थाई जो, वि य जईण पडितप्पिओ बहुसो ॥ ८१। उक्कोसं तव-भूमिं समईओ सावसेस-चरणो यो छेयं पणगाईयं पावइ जा घरइ परियाओ ॥ ८२॥ आउट्टियाइ पञ्चिन्दिय-धाए, मेहुणे य दप्पेणी सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसु पि ॥८३॥ तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोसवइयर-गएसो दंसण-चरित्तवन्ते चियत्त-किच्चे य सेहे य॥ ८४॥ अच्चन्तोसन्स य परिलंग-दुगे य मूलकम्मे यो भिक्खभिम य विहियतवे ?-पारञ्चियं पत्ते॥८५॥छेए। उ परियाएऽणवट्ठ पारञ्चियावसाणे यो मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥८६॥उक्कोसं ब यो वा ५७४-चित्तो वि तेणियं कुणइ पहरइ जो य स-पक्खे निरवेक्खो धोर-परिणाभो ॥८७॥अहिसेओ सब्वेसु वि बहुसो पारञ्चिया हेसुअणवटुप्पावत्तिसु पसज्जमाणो अणेगासु ॥८॥कीरइ अणवटुप्पो, सो लिंग १- क्खेत २-कालओ ३॥श्री जीतकल्प सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21