Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuni Gyanmandir वा बहिया सेण्णं संनिविलु पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तदिवसं भिक्खायरियाए गंतूणं पडिनियत्तए, नो से कप्पइ|| तं स्यणिं तत्थेव उवाइणावेत्तए, जो खलु निगंथे वा निग्गंथी वा तं स्यणिं तत्थेव उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइज्जड़ से दुहओ वीइकममाणे आवजइ चाउमासियं परिहारहाणं अणुग्घाइयं ११५५'१२९१ से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं उग्गहं ओगिण्हित्ताणं चिद्वित्तएत्तिबेमि ‘११९२१३०॥ तइओ उद्देसो३॥ तओ अणुग्धाइया पनत्ता तंजहा-हत्थकम्मं करेमाणे मेहुणं पडिसेवमाणे राइभोयणं भुञ्जमाणे ९२११। तओ पारंचिया पन्नत्ता तंजहा-दुढे पारंचिए पमत्ते पारंचिए अन्नमन करेमाणे पारंचिए '१८११२॥ तओ अणवढप्पा पं० २०-साहम्भियाणं तेनं करेमाणे परधम्मियाणं तेनं रेमाणे हत्थायालं दलमाणे '२६२१३ तओ नो कप्पति पव्वावेत्तए तं०- पण्डए कीवे वाइए '३१४।४। एवं मुण्डावेत्तए सिक्खावेत्तए सेहावित्तए उवट्ठावेत्तए संभुञ्जित्तए संवासित्तए ३२१६तओ नो कप्पन्ति वाएत्तए तं०-अविणीए विगईपडिबद्धे अविओसवियपाहुडे, तओ कप्पन्ति वाएत्तए २०-विणीए नो विगईपडिद्धे विओसवियपाहुडे' ३३५'६। तओ/ दुस्सनप्या पं० २०-दुढे मूढे वुग्गाहिए '३५८१७ तओ सुस्सनप्या पं० २०-अदुढे अमूढे अवुग्गाहिए '३६०८ निग्गंथं च णं गिलायमाणं माया वा भगिणी वा धूया वा पलिस्सएज्जा तं च निग्गन्थे साइज्जेज्जा मेहुणपडिसेवणपत्ते आवजइ चाउम्भासियं | परिहारहाणं अणुग्धाइयो। निगथिं च णं गिलायमाणिं पिया वा भाया वा पुत्ते वा पलिस्सएजा तं च निगन्थी साइजेजा ॥ श्री बृहत्कल्पसूत्रम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41