Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir || आयरियउवज्झायं उद्दिसावेत्तए' ६२१ '।२३। भिक्खू य राओ वा वियाले वा आहच्च वीसुम्भेजा, तं च सरीरगं केई वेयावच्चकरा भिक्खू इच्छेज्जा एगंतमते बहुफासुए पएसे परिद्ववेत्तए, अत्थि य इत्थ केइ सागारियसंतिए उवगरणजाए अचित्ते परिहरणारिहे कंप्पड़ से सागारकडं गहाय तं सरीरंगं एगंते बहुफासुए पएसे परिद्ववेत्ता तत्थेव उवनिक्खेवियव्वे सिया' ६९० १२४ । भिक्खू य अहिगरणं कट्टु तं अहिगरणं अविओसवेत्ता नो से कम्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खभित्तए वा पविसित्तए वा, भिक्खू० नो से कम्पइ बहिया वियारभूमिं वा वियारभूमिं वा निक्ख० पवि० वा, भिक्खू० गामाणुगामं दुइज्जित्तए, गणाओ गणं संकमित्तए, वासावासं वा वत्थए, जत्थेव अप्पणो आयरियउवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं बज्झागामं कप्पड़ से तस्सन्तिए आलोएत्तए पडिक्कमित्तए निन्दित्तए गरिहित्तए विउट्टित्तए विसोहित्तए अकरणाए अब्भुट्ठित्तए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जित्तए, से य सुएणं पट्टविए आइयव्वे सिया, से य सुएणं नो पडविए नो आइयव्वे सिया, से य सुएणं पट्टविज्ञमाणे नो आइयइ निज्जूहियव्वे सिया' ७१८ ' । २५ । परिहारकम्पद्वियस्स णं भिक्खुस्स कम्पड़ आयरियउवज्झायाणं तद्दिवसं एगगिहंसि पिंडवायं दवावेत्तए, तेण परं नो से कप्पइ असणं वा० दाउ वा अणुप्पदाडं वा, कप्पड़ से अन्नयरं वेयावडियं करेत्तए, तं०अट्ठावणं वा निसीयावणं वा तुयट्टावणं वा उच्चारपासवण खेल जल्लसिङ्घाणाण विगिंचणं वा विसोहणं वा करेत्तए, अह पुण एवं जाणेज्जा छिन्नावाएस पंथेसुतवस्सी आउरे झिझिए पिवासिए दुब्बले किलंते मुच्छेज्ज वा पवडेज्ज वा एवंसे कप्पड़ असणं ॥ श्री बृहत्कल्पसूत्रम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १९ For Private And Personal

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