Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir निग्गथिं सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदयंसि वा ओक्समाणिं वा ओवुझमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा| नाइक्कमइ८। निग्गंथे निग्गथिं नावं आरुभमाणिं वा ओरुभमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ '१३१९ खित्तचित्तं निग्गंथिं निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नातिकमति '१७८।१० दित्तचित्तं निग्गंथिं निग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ '१९३।११।जक्खाइटुं०।१२।उम्मायपत्तं०।१३।उवसग्गपत्तं०१४/साहिगरणं०१५ोसपायच्छित्तं०१६| भत्तपाणपडियाइक्खियं०१७ अट्टजायं निग्गथिं निग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा नाइक्कमइ '२४८११८ छ कप्पस्स पलिमंथू पं० २० कोकुइए संजमस्स पलिमंथू मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू तिन्तिणिए एसणागोयरस्सपलिमंथू चक्खुलोलुए इरियावहियाए पलिमंथू इच्छालोभे मुत्तिमागस्स पलिमंथूभिन्जानियाणकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था '२८६११९। छव्विहा कप्पट्टिई पं० ०-सामाइयसंजयकप्पट्टिई छेओवट्ठावणियसंजयकप्पट्टिई निव्विसमाणकप्पट्टिई निन्विट्ठकाइयकप्पट्टिई जिणकप्पट्टिई थेरकप्पट्टिइत्तिबेमि '४२८१२० छटो उद्देसओ६॥ इति श्रीबृहत्कल्पच्छेदसूत्रं सम्मत्तं ॥ प्रभु महावीरस्वामीनी पट्टपरंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक, सैलाना नरेश प्रतिबोधक, देवसूर तपागच्छ, समाचारी संरक्षक, आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्यदेवेश् श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ प्रतापी-सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य ॥ श्री बृहत्कल्पसूत्रम् ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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