Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
View full book text
________________
द्वितीय उद्देशक सूत्र संख्या विषय
गाथाङ्क पृष्ठाङ्क प्रथम और द्वितीय उद्देशक का सम्बन्ध
८१६-८१८ १-८ पाद-प्रोञ्छनक (रजोहरग)
८१६-८५० ६७-७२ काष्ठ के दंड वाला पाद-प्रोञ्छनक बनाने का निषेध, तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त एवं अपवाद
८१६-८२७ ६७-६६ काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक रखने से लगने वाले दोष
८२८६६ काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक रखने के कारण
વરદ ૭૦ दण्ड और दसा का परिमाण काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक रखने के प्रावाद
८३१-८३४ काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक ग्रहण करने का निषेध काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक लेकर रखने का निषेध काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक रखने की आज्ञा देने का निषेध काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक देने का निषेध काष्ठ के दण्ड वाले पाद-प्रोञ्छनक के परिभोग का निषेध
५३५-८३७ नियत काल से अधिक काष्ठ के दण्ड वाला पाद-प्रोञ्छनक रखने का निषेध, एतत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त एवं अपवाद
७३८--८४४ ७१-७२ काष्ठ के दण्ड वाले पाद-प्रोञ्छनक को धोने का निषेध, तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त एवं अपवाद
८४५-८५० ७२--७३ गन्ध चन्दन प्रादि की गन्ध सूंघने का निषेध, तत्सम्बन्धी अपवाद एवं प्रायश्चित्त ८५१ सोपान सोपान आदि का स्वयं निमांग करने का निषेध, तत्सम्बन्धी अपवाद एवं प्रायश्चित्त सेतु सेतु का निर्माण करने का निषेध. तत्सम्बन्धी अपवाद एवं प्रायश्चित्त छींका
छींका आदि के निर्माण का निषेध, तत्सम्बन्धी प्रावाद एवं प्रायश्चित्त १३ रज्जु
रज्जू प्रादि का निर्माण करने का निषेध, तत्सम्बन्धी अपवाद एवं प्रायचित्त १४. १७ सूई आदि के सुधारने ( संवारने ) का निषेध १८-१९ भाषा
८५२-८८५ ७४-८१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org