Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 19
________________ गाथाङ्क पृष्ठाङ्क १२१७-१३८६ १४६-१८७ १२१७-१२४३ १४६-१५४ १२४४-१२८० १५४-१६३ १२८१-१२८६ १६३-१६४ १२८७-१२६६. १६४-१६७ सूत्र संख्या विषय ५०-५८ शय्या-संस्तारक पयुषणतक के लिए लाये हुए शय्या-संस्तारक को अतिरिक्त काल तक रखने का निषेध संवत्सरी के बाद दस रात्रि से अधिक समय तक शय्यासंस्तारक रखने का निषेध वर्षा में भीगते हुए शय्या-संस्तारक को उठा कर एक ओर न रखने से लगने वाले दोष बिना सागारिक को अनुमति के प्रत्यर्पणीय शय्या-संस्तारक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का निषेध ५४-५५ सागारिक के शया-संस्तारक को बिना अनुज्ञा के एक स्थान से दूसरे स्थान में बाहर ले जाने का निषेध प्रत्यर्पणीय शय्या-संस्तारक को बिनो वापिस सौंपे विहार करने का निषेध बिछाये हुए शय्या-संस्तारक को बिना समेटे विहार करने का निषेध ५८ खोए गए शय्या-संस्तारक के न ढूढने पर लगने वाले दोष बिना प्रतिलेखन उपधि रखने का निषेध उपधि-उपकरण के प्रकार जिनकल्पिक उपधि स्थविरकल्पिक उपाध उपधि की प्रतिलेखना एवं तत्सम्बन्धी दोष १६७ ५६ १३००-१३०६ १६७-१६६ १३१०-१३१३ १३१४-१३८६ ।। ५९ १३८७-१३८६ १३६०-१३६४ १३६५-१४१६ १४१७-१४३११ १६६-१७० १७०-१८७ १८७ १८८ १८८-१८६ १८६ १६३ १९३-१६७ १४३८ १६६ १-१५ १९९-२०६ तृतीय उद्देशक द्वितीय तथा तृतीय उद्देशक का सम्बन्ध आगंतागार, पारामागार, गृहपतिकुल प्रादि से सम्बन्धित ग्राहार १४३६-१४८१ प्रागंतागार (मुसाफिर खाना ) आदि में जोर-जे. से चिल्लाकर आहार मांगने का निषेध, तत्सम्बन्धी दोष, अपवाद प्रादि १४३६.१४४८ पागंतागार प्रादि में कौतुक के निमित्त आने वाले से पाहार पांगने का निषेध, तत्सम्बन्धी दोप, अपवाद एवं प्रायश्चित्त १४४६-१४५७ १९६-२०१ २०१-२०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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