Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 21
________________ पृष्ठाङ्क २३१ २३१-२३३ २३३-२३६ २३६-२३८ २३८-२४३ २४३-२५३ २४३-२४४ २४४ २४५ २४५-२५१ २५१-२५३ । ११ ] चतुर्थ उद्देशक मूत्र संख्या विषय गाथाङ्क तृतीय और चतुर्ध उद्देशक का सम्बन्ध १५५५ १ राजा को वश में करने का निषेध १५५६-१५६७ २-१८ राजरक्षक, नयररक्षक इत्यादि को वश में करने आदि का निषेध १५६८-१५८२ १६ कृत्स्न-प्रखण्ड औषधि के उपभोग का निषेध १५८३-१५६१ - २०-२१ प्राचार्य एवं उपाध्याय को बिना दिए आहार का उपभोग करने का निषेध १५६२-१६१६ - २२ स्थापना-कुल में बिना जाने-बूझे प्रवेश करने का निषेध १६१७-१६६५ ।। स्थापना-कुल के भेद १६१७-१६२२ स्थापना कुल सम्बन्धी दोप १६२३-१६२४ तत्सम्बन्धी प्रायश्चित १६२५ स्थाना-कुल में प्रवेश न करने वाले क गुण गच्छवासियों की समाचारी १६२७-१६५२ स्थापना-कुलों में भोजनादि ग्रहण करने वालों को ममाचारी १६५३ १६६५ साधु द्वारा साध्वी के उपाश्रय में प्रविधिपर्वक प्रवेश करने का निषेध १६६६-१७४५ 'साधु-साध्वियों की समाचारी १७४६-१७८४ २४. साध्वी के ग्रागमन-पथ में दड आदि रखने का निषेध २७८५-१७६६ २५-२६ क्लेश का निषेध १७६७-१८२२ २५ नये क्लेश की उत्पत्ति का निषेध १७६७-१८१७ २६ . . पुराने क्लेश को पुनरुत्पत्ति का निधि १८१८-१८२२ २७ मुह फाड़ फाड़ कर हँसने का निषेध १८२३-१८२७ २८-३० पावस्थ आदि शिथिलाचारियों के साथ सम्बन्धस्थापन का निषेध १८२८-१८५७ 1८-३६ मस्निग्ध हस्त प्रादि से पाहार ग्रहण करने का निषेध १८४८-१८५३ ४०-४८ ग्राम-रक्षक प्रादि को प्रशंसा-पूजा करने का निषेध १८५४ ४६-१०१ परस्पर पाद, काय. दत, प्रोट इत्यादि के प्रमाजन, परिमर्दन ग्रादि का पूर्ववत् निषेध १८५५ १०२-१२२ उचार-प्रवण भूमि के अप्रतिलेखन से लगने वाले दोष १८५६-१८९३ १०४.१११ उबार प्रश्रवण सम्बन्धी अन्य दोप एवं प्रायश्चित्त १८६४-१८८२ ११२ अपारिहारिक द्वारा पारिहारिक के साथ अाहारादि का उपभोग करने का निषेध, तत्सम्बन्धी दोप. प्रायश्चित एवं अपवाद १८८३.१८६४ २५४-२६६ २७०-२७७ २७७-२७६ २७६-२८५ २७९-२८४ २८४-२८५ २८५-२८६ २८६-२६० २६०-२६१ २६१-२६२ २६२-२६७ २६७-२६८ २६८-३०३ ६०३.३०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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