Book Title: Agam 21 Pushpika Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र- १०, 'पुष्पिका' अध्ययन / सूत्र तब वह अंगजित गाथापति इस संवाद को सूनकर हर्षित एवं संतुष्ट होता हुआ कार्तिक श्रेष्ठी के समान नीकला यावत् पर्युपासना की । धर्म को श्रवण कर और अवधारित कर उसने प्रभु से निवेदन किया- देवानुप्रिय ! ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करूँगा । तत्पश्चात् मैं यावत् प्रव्रजित होऊंगा । गंगदत्त के समान वह प्रव्रजित हुआ यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया । अंगजित अनगार ने अर्हत् पार्श्व के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ले लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । चतुर्थभक्त यावत् आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करके अर्धमासिक संलेखना पूर्वक अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन कर मरण करके संयम - विराधना के कारण चन्द्रावतंसक विमान की उपपात-शैया में ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ । तब सद्यः उत्पन्न ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त हुआ- आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति । भदन्त ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की कितने काल की आयु है ? गौतम ! एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है । आयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार से यावत् मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है, ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन- १ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण दीपरत्नसागर कृत् " (पुष्पिका)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" Page 6Page Navigation
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