Book Title: Agam 21 Pushpika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र-१०, 'पुष्पिका' अध्ययन/सूत्र कल प्रातःकाल यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर पृथक् उपाश्रय में जाकर रहना उचित है।' यावत् सूर्योदय होने पर सुव्रता आर्या को छोड़कर वह नीकल गई और अलग उपाश्रय में जाकर अकेली रहने लगी । तत्पश्चात् वह सुभद्रा आर्या, आर्याओं द्वारा नहीं रोके जाने से निरंकुश और स्वच्छन्दमति होकर गृहस्थों के बालकों में आसक्त-यावत्उनकी तेल-मालिश आदि करती हुई पुत्र-पौत्रादि की लालसापूर्ति का अनुभव करती हई समय बीताने लगी। तदनन्तर वह सुभद्रा पासत्था, पासत्थविहारी, अवसन्न, अवसन्नविहारी, कुशील कुशीलविहारी, संसक्त संसक्तविहारी और स्वच्छन्द तथा स्वच्छन्दविहारी हो गई। उसने बहुत वर्षों तक श्रमणी-पर्याय का पालन किया । अर्धमासिक संलेखना द्वारा आत्मा को परिशोधित कर, अनशन द्वारा तीस भोजनों को छोड़कर और अकरणीय पाप-स्थान-की आलोचना-किए बिना ही मरण करके सौधर्मकल्प के बहुपुत्रिका विमान की उपपातसभा में देवदूष्य से आच्छादित देवशैया पर अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहना से बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई । उत्पन्न होते ही वह बहुपुत्रिका देवी पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त होकर देवी रूप में रहने लगी। गौतम ! इस प्रकार बहुपुत्रिका देवी ने वह दिव्य देव-ऋद्धि एवं देवद्युति प्राप्त की है यावत् उसके सन्मुख गौतम स्वामी ने पुनः पूछा-' भदन्त ! किस कारण से बहपुत्रिका देवी को बहपत्रिका कहते हैं ?' 'गौतम ! जब-जब वह बहुपुत्रिका देवी देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाती तब-तब वह बहुत से बालक-बालिकाओं, बच्चेबच्चियों की विकुर्वणा करती । जाकर उन देवेन्द्र-देवराज शक्र के समक्ष अपनी दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति एवं दिव्य देवानुभाव-प्रदर्शित करती । इसी कारण हे गौतम ! वह उसे बहुपुत्रिका देवी' कहते हैं । 'भदन्त ! बहपुत्रिका देवी की स्थिति कितने काल की है ?' 'गौतम ! चार पल्योपम है ।' 'भगवन् ! आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगी ?' 'गौतम ! आयुक्षय आदि के अनन्तर बहुपुत्रिका देवी इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्य-पर्वत की तलहटी में बसे बिभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका रूप में उत्पन्न होगी । उस बालिका के माता-पिता ग्यारह दिन बीतने पर यावत् बारहवें दिन वे अपनी बालिका का नाम सोमा रखेंगे ।' तत्पश्चात् वह सोमा बाल्यावस्था से मुक्त होकर, सज्ञानदशापन्न होकर युवावस्था आने पर रूप, यौवन एवं लावण्य से अत्यन्त उत्तम एवं उत्कृष्ट शरीरवाली हो जाएगी । तब माता-पिता उस सोमा बालिका को बाल्यावस्था को पार कर विषय-सुख से अभिज्ञ एवं यौवनावस्था में प्रविष्ट जानकर यथायोग्य गृहस्थोपयोगी उपकरणों, धनआभूषणों और संपत्ति के साथ अपने भानजे राष्टकट को भार्या के रूप में देंगे। वह सोमा उस राष्ट्रकूट की इष्ट, कान्त, भार्या होगी यावत् वह सोमा की भाण्डकरण्डक के समान, तेलकेल्ला के समान, वस्त्रों के पिटारे के समान, रत्नकरण्डक के समान उसकी सुरक्षा का ध्यान रखेगा और उसको शीत, उष्ण, वात, पित्त, कफ एवं सन्निपातजन्य रोग और आतंक स्पर्श न कर सकें, इस प्रकार से सर्वदा चेष्टा करता रहेगा । तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई प्रत्येक वर्ष एक युगल संतान को जन्म देकर सोलह वर्ष में बत्तीस बालकों का प्रसव करेंगी। तब वह बहुत से दारक-दारिकाओं, कुमार-कुमारिकाओं और बच्चे-बच्चियों में से किसी के उत्तान शयन करने से, किसी के चीखने-चिल्लाने से, जन्म-धूंटी आदि दवाई पिलाने से, घुटने-घुटने चलने से, पैरों पर खड़े होने में प्रवृत्त होने से, चलते-चलते गिर जाने से, स्तन को टटोलने से, दूध माँगने से, खिलौना माँगने से, मिठाई माँगने से, कूर माँगने से, इसी प्रकार पानी माँगने से, हँसने से, रूठ जाने से, गुस्सा करने से, झगड़ने से, आपस में मारपीट करने से, उसका पीछा करने से, रोने से, आक्रंदन करने से, विलाप करने से, छीना-छपटी करने से, कराहने से, ऊंघने से, प्रलाप करने से, पेशाब आदि करने से, उलटी करने से, छेरने से, मूतने से, सदैव उन बच्चों के मल-मूत्र वमन से लिपटे शरीरवाली तथा मैले-कुचैले कपड़ों से कांतिहीन यावत् अशुचि से सनी हुई होने से देखने में बीभत्स और अत्यन्त दुर्गन्धित होने के कारण राष्ट्रकूट के साथ विपुल कामभोगों को भोगने में समर्थ नहीं हो सकेगी। ऐसी अवस्था में किसी समय रात को पिछले प्रहर में अपनी और अपने कुटुम्ब की स्थिति पर विचार करते मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 16

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