Book Title: Agam 21 Pushpika Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र-१०, 'पुष्पिका' अध्ययन/सूत्र [२१] पुष्पिका उपांगसूत्र-१०- हिन्दी अनुवाद अध्ययन-१-चन्द्र सूत्र-१ भदन्त! यदि श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने द्वितीय उपांग कल्पवतंसिका का यह भाव प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! उपांगों के तृतीय वर्ग रूप पुष्पिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! तृतीय उपांग वर्ग रूप पष्पिका के दस अध्ययन कहे हैं। सूत्र-२ ___ चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृत । सूत्र-३ हे भदन्त ! श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा राज्य करता था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । दर्शनार्थ परिषद नीकली । उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर बैठकर ४००० सामानिक देवों यावत् सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात प्रकार की सेनाओं, सात उनके सेनापतियों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य दूसरे भी बहुत से उस विमानवासी देव-देवियों सहित निरंतर महान गंभीर ध्वनिपूर्वक निपुण पुरुषों द्वारा वादित-वीणा, हस्तताल, कांस्यताल, त्रुटित, घन मृदंग आदि वाद्यों एवं नाट्यों के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगता हुआ विचर रहा था। उसने अपने विपुल अवधिज्ञान से अवलोकन करते हुए इस केवल-कल्प जम्बूद्वीप को और श्रमण भगवान महावीर को देखा । तब भगवान के दर्शनार्थ जाने का विचार करके सूर्याभदेव के समान अपने आभियोगिक देवों को बुलाया यावत् उन्हें देव-देवेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करने की आज्ञा दी फिर अपने पदाति सेनानायक को आज्ञा दी-सुस्वरा घंटा बजाकर सब देव-देवियों को भगवान के दर्शनार्थ चलने के लिए सूचित करो । यावत् सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि आदि प्रदर्शित करने की विकुर्वणा की । इतना अंतर है कि उसका यान-विमान १००० योजन विस्तीर्ण और ६२।। योजन ऊंचा था । माहेन्द्रध्वज की ऊंचाई २५ योजन की थी। भगवन् गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार करके निवेदन किया-भन्ते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चंद्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य दैविक प्रभाव कहाँ चले गये ? कहाँ समा गये ? गौतम ! चन्द्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य ऋद्धि आदि उसके शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई-पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न- श्रमण भगवान महावीर ने कहा गौतम ! उस काल और उस समय में श्रावस्ती नगरी थी । कोष्ठक चैत्य था। अंगति गाथापति-था, जो धनाढ्य यावत् लोगों द्वारा अपरिभूत था-वह अंगजित गाथापति श्रावस्ती नगरी के बहुत से नगरनिवासी व्यापारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपालक, आदि के अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, निर्णयों में, सामाजिक व्यवहारों पूछने योग्य एवं विचार-करने योग्य था एवं अपने कुटुम्ब परिवार का मेढि-प्रमाण, आधार, आलंबन, चक्षु, मेढिभूत यावत् तथा सब कार्यों में अग्रेसर था । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के समान धर्म की आदि करनेवाले इत्यादि, नौ हाथ की अवगाहना वाले पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु १६००० श्रमणों एवं ३८००० आर्याओं के समुदाय के साथ गमन करते हुए यावत् कोष्ठक चैत्य में पधारे । परिषद् दर्शनार्थ नीकली। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (पुष्पिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 5Page Navigation
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