Book Title: Agam 16 Surapannatti Uvangsutt 05 Moolam Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Agam Shrut Prakashan View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९॥1-9 पाहु९-१, पाहुइमाई- (११) पडिवत्तीओ उदए तह अस्थमणेसु य भेयघाए कण्णकला मुहुत्ताण गईइय (१२) निखममाणे सिग्घगई पविसंते मंदगईइ य चूलसीइससे पुरिसाणं तेसिंच पडिवतीओ 19011-10 (१३) उदयम्मि अह भणिया भेयघाए दुवे य पडिबत्ती चत्तारि मुहत्तगईए हुंति तइयम्मि पडिवती 11991-11 १३. सितं पोधे पाढे पाहुन पाहुइ पडिबत्ती संखा-६-6 (१) आयलिय मुहत्तग्गे एवंमागा यजोगासा कुलाई पुत्रमासी य सण्णिवाए य संठिई 11१२||-12 तारगणंच नेया य चंदमग्मत्तियावरे देवताण य अज्झयणे महत्ताण नामयाइय |१३||-13 दिवसा राइ युत्ता य तिहि गोत्ता भोयणाणि य आइन्च-चार मासा य पंच संवच्छराइय ||१४||-14 (१७) जोइसस्स दाराई नक्खत्तविजएविय दसमे पाहुडे एए वादीसं पाहुडपाहुडा 194||-15 १७.तंदसमे पार पाहा पहा संसा] -1७1-7 (५८) ता कहं ते वड्ढोवुड्ढी मुहुत्ताणं आहितेति वएला ता अट्ठ एगूणवीसे मुहुत्तसए सत्ताचीसंच सहिभागे मुहत्तस्स आहितेति वएजा 18 (१९) ता जया णं सूरिए सव्वटमंतराओ मंडलामो सव्वबाहिरं मंडल उपसंकमित्ता चारं चरइ सव्वबाहिराओ वा मंडलाओ सब्बब्बतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ एसणं अद्धा केवइयं राइंदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ता तिणि छाबडे राइंदियसएराइंदियागेणं आहितेति वएजा।९।-9 (२०) ता एयाए णं अद्धाए सूरिए कई मंडलाइं चरइ ता चुलसीयं मंडलसयं चरइ-बासीतं मंडलसयंदुक्खुत्तो चरइ तं जहा-निखममाणे चेव पविसमाणे चेव दुवेय खलु मंडलाइंसइंचरइतं जहा-सव्वब्मंतरंचेवमंडलं सव्यबाहिरंचेव मंडलं।१०।-10 (२१) जइ खलु तस्सेव आदिग्रस्त संवच्छरस्स सई अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे मवइ सई अट्टारसमुहत्ता राती भवति सई दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ सई दुवासमुहत्ता राती भवति पढमे छम्मासे अत्यि अट्ठारसमुहत्ता राती भवति नत्थि अट्ठारसमुहत्ते दिवसे अस्थि दुवालसमुहत्ते दिवसे नत्थि दुवालसमुहुत्ता राती दोचेछम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे नस्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती अस्थि दुवालसमुहुत्ताराती नस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे पढमे वाछम्मासे दोच्चेवा छम्मासे नत्यि पनरसमुहुत्ते दिवसे भवति नस्थि पन्नरसमुहत्ता राती भवति तत्य णं को हेतूति वएज्जा ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सबदीवसमुदाणं सव्वमंतराए जाव परिक्रोवेणं पत्रत्ते ता जया णं सुरिए सव्वमंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तथा णं उत्तमकट्ठपते उनकोसए अवारसमुहत्तेदिवसे पवइ जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अमितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे पवइ दोर्हि एगविभागमहत्तेहिं ऊणे वालसमहत्ता राती भवति दोहिं एगद्विभागमुहत्तेहिं अहिया से निक्खपमाणे सूरिए दोघंसि अहोरांसि अपितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं घरइ ता जया णं For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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