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प्रकाशकीय
स्व. गुरुदेव राष्ट्रसन्त उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज ने एक अमर प्रेरणा वाक्य दिया था-"ज्ञानदान महान् दान है। वीतराग वाणी पर श्रद्धा करना और उसका प्रचार करना किसी भाग्यशाली की पहचान है।"
हमारी संस्था पूज्य प्रवर्तकश्री जी के इसी बोधवाक्य को जीवन-सूत्र मानकर निरन्तर शास्त्र-सेवा के शुभ कार्य मे जुटी है। अब तक बारह ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है और अब हम प्रतिवर्ष दो ग्रन्थों का प्रकाशन करते हुए शास्त्र-सेवा के इस महान् कार्य को आगे बढा रहे हैं। ___ गत वर्ष १ मई को अचानक पूज्य प्रवर्तकश्री जी का स्वर्गवास हो जाना हम सबके लिए बहुत भारी आघातजनक रहा। उनकी उपस्थिति और आशीर्वाद से ही हमारी सब समस्याओं का समाधान हो जाता था। अब उनकी अनुपस्थिति में भी उनका आशीर्वाद तो हमारे साथ है ही। उन्हीं के शिष्यरत्न प्रवचनकेसरी उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज हमारे आधार हैं। उपप्रवर्तकश्री जी का अटूट संकल्प, दृढ निष्ठा और काम करने का साहस, सूझबूझ और सबका सहयोग प्राप्त करने की कला से यह कार्य सदा ही आगे बढता रहेगा ऐसा हमे दृढ विश्वास है। __ पाठकों के हाथों में अब 'रायपसेणिय (राजप्रश्नीय) सूत्र' सम्पूर्ण साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत है। इसके सम्पादन-मुद्रण आदि कार्यों में जिन महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ, हम उन सबके आभारी हैं।
महेन्द्रकुमार जैन
- अध्यक्ष पद्म प्रकाशन
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