Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma Publisher: Padma PrakashanPage 11
________________ का भाव समझने का मूल आधार है। उस टीका के आधार पर श्रद्धेय श्री रतन मुनि जी ने इसका सुन्दर अनुवाद-विवेचन किया है। जिसका प्रकाशन युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी के प्रधान सपादकत्व मे 'राजप्रश्नीयसूत्रम्' के रूप मे आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर ने प्रकाशित किया है। अब तक के प्रकाशित हिन्दी अनुवादो मे वही अनुवाद अधिक उपयोगी कहा जा सकता है। हमारे सम्पादन मे उसी का मूल पाठ रखा है तथा अनुवाद-विवेचन मे भी उसका उपयोग किया गया है। हम सम्पादक-प्रकाशक के आभारी है। शास्त्र-सेवा के इस महान कार्य मे मेरे स्व पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक राष्ट्रसन्त भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज की प्रेरणा व आशीर्वाद सदा ही मेरे साथ रहा है। अब उनकी अनुपस्थिति मे भी उनके आशीर्वाद का सबल सम्बल मेरे साथ है और उसी के बल पर मै इस कार्य मे आगे गतिशील रहने का साहस कर रहा हूँ। __इस सम्पादन-विवेचन मे प्रमादवश या अल्पज्ञता के कारण कही कोई अशुद्धि तथा जिनवाणी के विरुद्ध लिखा गया हो तो मै सरल हृदय से 'मिच्छामि दुक्कड' लेता हूँ। चित्रकार बधु ने चित्रो के माध्यम से स्वर्गीय विमानो की रचना दिखाने तथा प्रदेशी राजा एव a केशीकुमार श्रमण के दृष्टान्तो को चित्रित करने मे अच्छा परिश्रम किया है। जिससे रोचकता व नवीनता बढ गई है। इसका हिन्दी अनुवाद व विवेचन करने में प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' का सहयोग प्राप्त हुआ है तथा अग्रेजी अनुवाद मे सुश्रावक श्री राजकुमार जैन, दिल्ली से सहयोग मिला है। - हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद को बालयोगी श्री तरुण मुनि जी, उपप्रवर्तिनी विदुषी आज्ञावती जी महाराज, उपप्रवर्तिनी श्रमणीसूर्या डॉ सरिता जी महाराज तथा विदुषी साध्वी स्नेहकुमारी जी महाराज ने भी ध्यानपूर्वक देखा है, उचित परामर्श एव सहयोग दिया है। सदा की भॉति गुरुभक्त दानी श्रावको ने प्रकाशन * मे अपना सहयोग दिया है। ___सभी के सहयोग से श्रुत-सेवा के इस पुण्य कार्य मे मै आगे बढ रहा हूँ और बढता रहूँगा इसी आत्म-विश्वास के साथ । -उपप्रवर्तक अमर मुनि (11) OES Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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