Book Title: Agam 13 Raipaseniyam Uvangsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रायपसेणिय -११ एएण विटाणेणं चित्ता जीवे केवलिपन्नत्तं धम्म लभइ सवणयाए जस्थ वियप समणेणं वा माहणेण वा सद्धि अभिसमागचाइ तत्थ वियणं नो हत्थेण वा वत्येण वा छत्तेणं वा अप्पागं] आवरेत्ताणं चिट्ठइ एएण वि ठाणेणं चित्ता जीवे केवलिपन्नत्तं धपं लभइ सवणवाए तुझं च णं चित्ता पएसी राया आरामगयं वा [उजाणगयं वा समणं वा माहणं या नो अभिगच्छइ नो यंदइ नो नमसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणे इनो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पञ्जुवासेइ नो अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाईपुच्छइतं कहणं चित्ता पएसिस्स रपणोधम्ममाइक्खिस्सामोउवस्सयगयं समर्णवामाहणं वा जाव नो पज्जुवासेइ नो अट्टाइं जाव पुच्छइ तं कहं णं चिता पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामो गोवरगगवं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो जाव नो पञ्जुवासेइ नो विउलेणं असणपाणखाइमसाइपेणं पडिलाभेइ नो अढाइं जाव नो पुच्छइतं कह गं चित्तापएसिस्सरण्णोधम्ममाइक्खिस्सामो जस्थ विय णं सपणेणं वा माहणेणं वा सद्धिं अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं हत्थेणं वा वस्येण वा छत्तेणं वा अप्पाणं आवरेत्ता चिट्ठइ तं कहं णं चित्ता पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खिस्सामा तए णं से चित्तेसारही केसि कुपार-समणं एवं वयासी-एवं खलु भंते अण्णया कयाइ कंचोएहिं चत्तारि आता उवायणं उवणीया ते मए परिसस्त रण्णो अण्णया चेव उवणेया तं एएणं खलु भंते कारणेणं अहं पएसि रायं देवाणुप्पियाणं अंतिए हव्यमाणेस्सामि तं मा णं देवाणुप्पिया तुम्मे पएसिस्स रपणो धम्ममाइक्वमागा गिलाएजाह अगिलाए णं भंते तुटभे पएसिस्स रण्णो धप्पपाइक्खेनाए छंदेणं भंते तुझे पएसिसस एण्णो धम्ममाइख्खेनाह तए णं से केसी कुमार-सपणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-अवियाई चित्ता जाणिस्मामोतएणं से चित्ते सारही केसि कुमार-समणं बंदइ नमसइ जेणेव चाउघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ वाइघंटआसरहंदुरुहइजामेवदिसिं पाउटभूए तापेवदिसिंपडिगए।६१1-81 (६२) तए णं से चित्ते सारही कलं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे प्रभाए कयनियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणारे तेयसा जलंते साओ गिहाओ निष्णच्छइ जेगेव पएसिस्स रपणो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ परसिं रायं करयल [परिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं पत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खन्नु देवाणुप्पियाणं कंबोएहिं चत्तारि आसा ज्वावर्ण उवणीया ते घ मए देवाणुप्पियाणं अण्णया वेव विगइया तं एह णं सामी ते आसे चिट्ठ पासह तए णं से पएसी राया चित्तंसारहिं एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं चित्ता तेहिं चेव चर्हि आसेहिं चाडपंट आसरहं जुत्तानेव उचट्ठवेह [एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि तए मं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ट-जाव हिवए उवट्टवेइ एयमाणत्तियं पञ्चविणइ तए णं से पएसी राचा चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयपटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुइ-[चित्तमाणदियए पीइमणे परमसोमस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए पहाए कय-वलि-कम्मे कयकोउयपंगलपायचित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते] अप्पमहन्धाभरणालंक्रियसरीर साओ गिहाओ निगच्छइ जेणामेव चाउग्धंडे आसरहे तेणेव उवागच्छइ चाउाघंटं आसरहं दुरुहइ सेपवियाए नगरीए मन्झमझेणं निपच्छाइ तए णं से चित्ते सारही तं रहनेगाई जोवणाई उत्यामेइ तए णं से पएसी रावा उण्हेण व तण्हाए य रहवाएण व परिकिलते समाणे चित्तंसारहिं एवं वयाशीचित्ता परिकिलंते में सरीरे परावत्तेहिं रहं तए णं से चित्ते सारही रहं परावत्तेइंजेणेव मियवणे उन्नाणे For Private And Personal Use Only

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