Book Title: Agam 13 Raipaseniyam Uvangsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सुतं-७२ सखत्तियं-परिसाए अवरज्झइ से णं हत्थच्छिण्णए वापायच्छिण्णए वा सीसच्छिण्णए वा सूलाइए वा एगाइने कूडाहने जीवियाओ ववरोविजइ जे णं गाहावइपरिसाए अवरम्झइ से णं तणेणं या वेढेण दा पलालेण वा वेढिता अगणिकाएणं झामिजइ जे णं माहणपरिसाए अवरज्झइ से णं अणिट्टाहिं [अकंताहिं अप्पियाहिं अमणुण्याहिं अमणामाहि) बागृहि ज्यालभित्ता कुंडियालणए वा सूणगलंछणए वा कीरइ निम्सिए वा आणविजइ जे णं इसिपरिसाए अवरज्झइ से णं नाइ-जाव उवालब्भइ एवं च ताव पएसी तुपं जाणासि तहावि णं तुपं मम वामं वामेणं दडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेमं वसि ___तए णं पएसी रावा केसि कुमार-समणं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहि पढमिल्लुएणं चेव वागरणेणं संलद्धे तए णं ममं इसेयारूवे अज्झत्यिए चिंतिए पस्थिए मोगए संकप्पे समुपजिस्था-जहा जहा णं एयस्स परिसस्स वामं वामेणं जाव वियच्चासं विवच्चासेणं वहिस्सामि तहा-तहा णं अहं नाणंच नागोवलंभं च दंसणं च दंसणोवलंमं च जीवंचजीवोवलंमंच उवलभिस्सामि तं एएणं कारणेणं अहं देवाणुप्पियाणं वामं वामेणंजाव विवमाप्तं विवच्चासेणं यट्टिए तएणकेसी कुमार-समणे पएसिं राप एवं वयासी-जाणासिणं तुपंपएसी कइ ववहारगा पन्नत्ताहंता जाणामि चत्तारि ववहारगा पन्नत्ता-देइ नापेगे नो सण्णवेइ सण्णवेइ नामेंगे नो देइ एगे देइ वि सप्णवेइ वि एगे नो देइ नो सण्णवेइ जाणासि णं तुमं पएसी एएसि चउण्हं पुरिसाणं के ववहारी के अव्ववहारी हंता जाणामि-तत्य णं जेसे पुरिसे देइ नो सण्णवेइ से णं पुरिसे ववहारी तत्थ णं जेसे पुरिसे नो देइ सण्णवेइ से णं पुरिसे ववहारी तत्य णं जेसे पुरिसे देइ विसण्णवेइ वि से पुरिसे ववहारी तत्य णं जेसे पुरिसे नो देइ नो सण्णवेइ से णं अववाहारी एवामेव तुमं पि ववहारी नो चेव णं तुम पएसी अववहारी।७२|-72
(७३) तए णं पएसी राया केसि कुमार-समणं एवं वयासी-तुझे णं भंते इय छेया दक्खा [पतट्ठा कुसला पहामई विणीया विण्णाणपत्ता] उवएसलद्धा समत्था णं भंते ममं करयलंसि वा आमलवं जीवं सरीराओ अभिनिवट्टिताणं उवदंसित्तए तेणं कालेणं तेणं सभएणं पएसिस्स रणो अदूरसामंते वाउयाए संयुत्ते तणवणस्सइकाए एयइ वैयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ तं तं मावं परिणमइ तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी-पाससि णं तुम पएसी राया एवं तणवणस्सइकायं एयंतं जाय तं तं तं भावं परिणतं हता पासामि जाणासि णं तुपं पएसी एवं तणवणस्सइकार्य किं देवो चालेइ असुरो वा चालेइ नागो वा चालेइ किन्नरो वा चालेइ किंपुरिसो वा चालेइ महारगो वा चालेइ गंधव्यो वा चालेइ हता जाणामि-नो देवो चालेइ जाव नो गंधब्बो चालेइ याउयाए चालेइ पाससि णं तुमं पएसी एयस्स याउकायस्स सरूविस्स सकम्मरस सरागस्स समोहस्स सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स रूवं नो तिणढे सपट्टे
जइणं तुम पएसी एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स जाव ससरीरस्स रूवं न पाससितं कहणं पएसी तय करयलंसि वा आमलगं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टिताणं उवदंसिस्सामि एवं खलु पएसी दसट्ठाणाई छउमत्ये पणुस्से सव्वभावेणं न जाणइ न पासइ तं जहा-धम्पत्थिकायं अधम्पत्यिकार्य आगा- सस्थिकायं जीवं असरीरबद्धं परमाणुपोग्गलं सई गंधं वायं अयं जिणे भविस्सइ वा नो मविस्सइ अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्सइ वा नो वा करिस्सइ एताणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे
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