Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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उपासकदसांग सूत्र
समणेहिं णिग्गंथेहिं दुवालसंगं गणि-पिडगं अहिज्जमाणेहिं अण्णउत्थिया अट्ठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य णिप्पट्ट - पसिणवारणा करित्तए ।
तए णं समणा णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स 'तह' त्ति एयमट्ठे विणएणं पडिसुर्णेति ।
तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाइं पुच्छ्इ, पुच्छित्ता अट्ठमादियइ, अट्ठमादित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए । सामी बहिया जणवय-विहारं विहरइ ।
तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वइक्कंताइं । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । एवं एक्कारस उवासग पडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमा जाव चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं भंते ! कुंडकोलिए ताओ देवलगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ, सव्व दुक्खाणं अंतं काहि । णिक्खेवो जहा पढमस्स ।
॥ छ अज्झयणं समत्त ॥
सत्तमं अज्झयणं सद्दालपुत्
सत्तमस्स उक्खेवो । पोलासपुरे णामं णयरे । सहस्संबवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया । तत्थ णं पोलासपुरे णयरे सद्दालपुत्ते णामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवसइ । आजीवियसमयंसि लद्धट्ठे, गहियट्ठे, पुच्छियट्ठे, विणिच्छियट्ठे, अभिगयट्ठे, अट्ठिमिंज-पेमाणुरागरत्ते अयमाउसो ! आजीविय समए अट्ठे, अयं परमट्ठे, सेसे अणट्टे त्ति आजीविय समएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी णिहाणपउत्ता, एक्का वुड्ड्ढिपउत्ता, एक्का पवित्थरपउत्ता, एक्के वए, दस-गोसाहस्सिएणं वएणं ।
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