________________ समर्पण जिनकी अनिर्वचनीय शान्त मुख-मुद्रा ही भव्य जीवों को परम शान्ति और निश्रेयस् का संदेश संभलाती थी, जिनके संयम-जीवन में अनुपम सरलता, सात्त्विकता, सौम्यता, निरहंकारता और विनम्रता अोतप्रोत हो चुकी थी, जो अपनी परमोदार वृत्ति एवं प्राणीमात्र के प्रति अनन्य वत्सलता के फलस्वरूप जैनजैनेतर धर्मप्रेमी जनता में समान रूप से समादरणीय, श्रद्धेय और महनीय थे, जिनके परोक्ष शुभाशीर्वाद के फलस्वरूप आगमप्रकाशन का यह भगीरथ अनुष्ठान सत्वर गति से सम्पन्न हो रहा है, जिनका मेरे व्यक्तित्व-निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, जिनके असीम उपकारों का मैं सदैव ऋणी हूं, उन श्रमणसंध के मरुधरामंत्री परमपूज्य ज्येष्ठ गुरुभ्राता प्रवर्तकवरमुनिश्री हजारीमलजी महाराज के कर-कमलों में सादर समर्पित / मधुकर मुनि [प्रथम संस्करण से] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org