Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 139
________________ ३० ३१ ३२ ३३ ठाणांगतं सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे । धेवए चेव णेसादे, सरा सत्त वियाहिया ॥१॥ एसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहासज्जं तु अग्गजिब्भाए, उरेण रिसभं सरं । कंठुग्गतेण गंधारं, मज्झजिब्भाए मज्झिमं ॥१॥ णासाए पंचमं बूया, दंतोट्ठेण य धैवतं । मुद्धाणेण य णेसादं, सरट्ठाणा वियाहिया ॥२॥ सत्त सरा जीवणिस्सिया पण्णत्ता, तं जहासज्जं रवइ मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो णदइ गंधार, मज्झिमं तु गवेलगा ॥ १ ॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छट्ठे च सारसा कोंचा, सायं सत्तमं गजो ॥२॥ सत्त सरा अजीवणिस्सिया पण्णत्ता, तं जहा सज्जं रवइ मुइंगो, गोमुही रिसभं सरं । संखो णदइ गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥१॥ चउचलणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं । आडंबरो धैवतियं, महाभेरी य सत्तमं ॥२॥ एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा सज्जेण भइ वित्तिं, कयं च ण विणस्स । गावो मित्ता य पुत्ता य, णारीणं चेव वल्लभो ॥१॥ रिसभेण उ एसज्जं, सेणावच्चं धणाणि य । वत्थगंधमलंकारं, इत्थिओ सयणाणि य ॥२॥ गंधारे गीतजुत्तिणा, वज्जत्ती कलाहिया । भवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा ॥३॥ मज्झिमसरसंपण्णा, भवंति सुहजीविणो । खायइ पियइ देइ, मज्झिमसरमस्सिओ ॥४॥ पंचमसरसंपण्णा, भवंति पुढवीप । सूरा संगहकत्तारो, अगगणणायगा ॥ ५ ॥ 134

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