Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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ठाणांग सुत्तं
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवित्तीओ पण्णत्ताओ । एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती पण्णवेहिइ ।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं अहाकम्मिए इ वा उद्देसिए इ वा मीसज्जाए इ वा अज्झोयरए इ वा पूइए कीए पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसट्टे अभिहडे इ वा कंतारभत्ते इ वा दुब्भिक्खभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा पाहुणभत्ते इ वा मूलभोयणे इ वा कंदभोयणेइ वा फलभोयणे इ वा बीयभोयणेइ वा हरियभोयणेइ वा पडिसिद्धे; एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं आहाकम्मियं वा जाव पडिसेहिस्सइ ।
से जहाणाम अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वइए सपडिक्कमणे अचेल धम्मे पण्णत्ते; एवामेव महापउमे वि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं अचलगं धम्मं पण्णवेहिइ ।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइएदुवालसविहे सावगधम्मे पण्णत्ते। एवामेव महापउमे वि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्मं पण्णविस्स ।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जायरपिंडे इ वा रायपिंडे इ वा पडिसिद्धे; वामेव महापउमे वि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जायरपिंडं वा रायपिंडं वा पडिसेहिस्सइ । से जहाणाम अज्जो ! मम णव गणा एगारस गणधरा । एवामेव महापउमस्स वि अरहओ णव गणा एगारस गणहरा भविस्संति ।
से जहाणामए अज्जो ! अहं तीसं वासाई अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगारओ अणगारियं पव्वइए, दुवालस संवच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थ-परियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं । एवामेव महापउमे वि अरहा तीसं वासाइं अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वहिइ, दुवालस संवच्छराई तेरसपक्खा छउमत्थपरियागं पाठणित्ता, तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वासाइं केवलिपरियाणं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहि -
जस्सील-समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो । तस्सील - समायारो, होहिइ अरहा महापउमो ॥१॥
णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा पण्णत्ता, तं जहाअभिई सवणो धणिट्ठा, रेवइ अस्सिणि मग्गसिर पूसो ।
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