Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar
Publisher: Jindas Mahattar
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श्रीसूत्रताङ्गचूर्णिः
॥ १३ ॥
॥ १३ ॥ मेदस्स तु परिणामो संघातविहूयणेण दव्वाणं । संघातेणं बंधी होड़ त्रियोगेण भेदोत्ति || १४ || भेदेण सुहुमखंधो संघातेणं च बादरों खंधो । सुहुमपरिणाममीसक्कमेण भेदेण परमाणू ।। १५ ।। अह वायरो उ खंधो चक्खुद्देसे य णंतगप| देसो । संघातभेदमीसग पडसंखय सगडमधम्मा || १६ || खंडगपयरगचुण्णिय अणुतडिओक्कारियाए तह चैव । भेदपरिणामो | पंचह णायन्बो सव्वखंधाणं ||१७|| खंडेहिं खंडभेदं पयरसभेदं जहन्भपडलस्स । चुण्णं चुण्णिय भेदं अणुतडितं वं सकलं तं ॥ १८ ॥ बुंदसि समारोहे भेदे उक्केरियाए उकेरं । वीसस्सपयोगमीसग संघातवियोग विविधगमो ।। १९।। जति कालगमेगगुणं सुक्किलयंपि य हवेज बहुगुणं । परिणामिति कालं सुक्केण गुणाहियगुणेणं ||२०|| जति सुक्किल मेगगुणं कालगदव्वं तु बहुगुणं जतिय । परिणामिति सुक्कं कालेण गुणाहियगुणेणं ।। २१ ।। जति सुक्कं एगगुणं कालयदव्वंपि एगगुणमेव । कावोयं परिणामो तुल्लगुणत्तेण संभवति ॥ २२ ॥ एवं पंचवि वण्णा संजोएणं तु वण्णपरिणामो । एगत्तीसं भंगा सव्वेऽवि य वण्णपरिणामे ॥ २३ ॥ एमेव य परिणामो गंधाण रमाण तह य फासाणं । संठाणांण य भणिओ संजोएण बहुविविकप्पो ॥ २४ ॥ अगुरूलहुपरिणामो परमाणूओ आरम्भ जाव असंखेजपदेसिया संधा सुहुमपरिणयांचि खंधा अगुरुलंहगा चैव । तत वितते घणा सिरे भासाए मंदघोरमिस्सा य । भेदस्मवि परिणामा एवमणेगा मुणेयव्वा ।। २५ ।। छाया य आतवे या उज्जोतो तह य अंधगारो य । एसोsवि पोग्गलाणं परिणामो फंदणा जा य ।। २६ ।। सीया णादिपगांसा छाया णाइच्चिया बहुविकल्पा । उन्हो पुणप्पगासो णायव्वो आयवो णामं ॥ २७ ॥ णवि सीतो गवि उण्हो समो पगासो व होति उज्जोओ। कालमडलं तमंपिय वियाण तं अंधयारंति ||२८|| दव्त्रस्म चलणादणा उ सा पुण गतित्ति णिद्दिट्ठा। वीमसपयोगमीसग अत्तपरेणं उभयतोऽवि ।। २९ ।। अन्द्रधन्वादीनां चं
मेदादिपरिणामाः
॥ १३ ॥

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