Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar
Publisher: Jindas Mahattar

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ मूत्रकरण श्रीसूत्रकताङ्गचूर्णिः ॥ १७॥ 'उदए'त्ति केसिंचि उदए वटुंतेहि केसिंचि अणुदए वद्रूतेहि पुरिसवेदे वदंतेहिं कतं, "उपसमेति कैसिंचि उबसमो केसिंचि अणुवसमे, अथवा उवसमेत्ति खओवसमिए भावे वटुंतेहिं कतं, कार एव तस्योपदिश्यते, कथं पुण तेहिं कतं, 'सोऊण जिणवरमतं' गाथा (१८) तवणियमणाणरुक्खं आरूढो केवली अमितणाणी। तो मुअइ णाणवुद्धि भवियजणविरोधणट्ठाए ॥2॥ तं बुद्धिमएण पडेण गणधरा गेण्हिउं णिरवसेसं । तित्थंकरभासिताई गंथंति ततो पवयणट्ठा ॥२॥ एयं गणथरसलदिएहि कृतं, सेसाणं मूलगणधरवजाणं पुवकतं अधिजंतेहिं तदावरणिजाणं कम्माणं खयोवसमं काऊण कतंति, एवं गणधरेहिं कृते को गुणः १, उच्यते-घेत्तुं च सुहे सुहगुणणधारणा दातु पुच्छिउं चेव । एतेण कारणेणं जीतंति कतं गणधरेहिं ॥१॥ अज्सव| साणेणं कतंति-पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं कतं, ण पूयासकारवित्तिहेतुं वा, उक्तं हि-"पंचहिं तु ठाणेहि सुत्तं अधिओझा, तंजहाणाणदताए०, वइजोगेण पभासति गाथा ।।१९।। यद्भगवान् भापते स वाग्योग एव, न श्रुतं, श्रुतस्य क्षायोपशमिकच्चादित्युक्तं, वाग्योगस्तु नामप्रत्ययत्वादौदयिको, विज्ञानमप्यस्य क्षायिकत्वात् केवलं, शब्दस्तु पुद्गलात्मकत्वात् द्रव्यश्रुतमात्र, अतोन भावश्रुतमिति, अतो वइजोगेण अरहता अत्यो पगरिसेहिं भासितो पभासिओ, केसि ?, 'अणेगजोगकरणा(गंधरा)ण साधूणं ते य के ?, गणधरा, कथं पुण ते अणेगजोगकरणा ?, उच्यते-जतो अणेगविधलद्धिसंपण्णा, तंजहा-कोहबुद्धी बीयबुद्धी पयाणुसारी खीरसप्पिमधुआसवाओ, वइजोगेण कतं तित्थंति तित्थगरेहिं बइजोगेण पभासिते हि गणधरेहिं वहजोगेण चेव सुत्तीकतं, तं पुणे गहितं 'जीवस्स साभावियगुणेहि'ति पागतभासाए, स सभावगुणः, वैकृतस्तु संस्कृतभाषा, आगंतुक इत्यर्थः, तं च पुण एवं 'अन्वरमतिगुणसंघानणाप' गाथा ||२०|| अक्षरगुणो णाम एकैकमणंतपर्याय अक्षरं, अश्वरामिलापो वा अक्षरगुणो, अमौह्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 ... 467